Sunday, February 10, 2008

1.02 पिंगल पढ़ल औरतन

[ कहताहर - राजनाथ सिंह, उम्र - 20 वर्ष, बेलखरा (गया) ]

एगो हलन महतो जी । उनका दूगो औरत हल । एगो हल ब्याही आउ एगो हल अर्घी । दूनों से एकेक गो लइका हले । महतो जी एगो गाय पोसले हलन । उनकर दूनो औरत पिंगल पढ़के पीर होयल हल । बाकि महतो जी न जानऽ हलन । महतो जी के गाय तो दूध जरूर दे हल बाकि दूध के बँटवारा दूनों औरत में कम-बेसी हो जा हल । काहे के जब गाय दूहा हल तो जे पहिले जा हल ओही जादे दूध ले ले हल । एही दूध ला महतो जी के दूनों औरत में लड़ाई रहऽ हल । उकरा सोच के महतो जी के एगो आउ गाय खरीद लेलन । आउ एह गाय दूनों औरतन के दे देलन । तब ब्याही औरत महतो से कहलक कि गाय तो बाँट देलऽ हे । तब तुहूँ बँटा जा । एकरा ला अर्घी भी तइयार हो गेल । बँटवारा भे गेल कि महतो जी दूनों दने अठ-अठ दिन रहतन । जब ब्याही के पारी हल तब सब काम महतो जी ब्याही के करऽ हलन । एक दिन देखलन कि अर्घी के बछिया खोला के सब सब दुधवा पीले हे । महतो जी सोचलन कि अर्घी के भी लइकवा हमरे हे आउ ब्याही के भी हमरे हे । से जब हम न बान्हब तऽ आज अर्घी के लइकवा भूखे रह जायत । ई सोच के महतो जी बान्हें लगलन तऽ ब्याही देख लेलक । अर्घी भी ओने से आवइत हल से देख लेलक । ब्याही कहलक कि तू तो आज हमरा दने हऽ । से तू काहे ओकर गइया के बान्हलऽ । तूँ अर्घी दने रहऽ हऽ । हमरा दने खाली देखावे ला रहऽ हऽ ।
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