Monday, February 11, 2008

1.17 औघड़दानी शिव-पार्वती

[ कहताहर - मुद्रिका, ग्राम - सुमेरा, जिला - जहानाबाद ]

एगो हले राजा । ऊ बड़ी राजा हले । ओकरा ही खायओला कोई नऽ हले । अनाज से सब कोठी भर गेल हले । से ऊ एक दिन अप्पन कोठी में आग लगा देलक । ओकर धुआँ अकास में उड़ल आउ इनरासन भी ओकरा से डोल गेल । उहाँ इनर भगवान समझलन कि कोई यज्ञ कयलक हे । ऊ आन के पूछलन कि "ओ बच्चा, केंवाड़ी खोल । तूँ काहे ला एतना धन जरवलऽ हे ? का सोच के अइसन काम कयलऽ हे ?" राजा कहलन कि "हमरा बड़ी मानी धन हले बाकि कोई खनिहारे नऽ हले ।" भगवान कहलन कि तोरा एगो बेटा होतवऽ । तूँ जहाँ बारह आम के एगो घउद के देखिहँऽ तऽ बायाँ हाथे मारिहँऽ आउ दहिना हाथे लोकिहँऽ । आन के अप्पन रानी के खिआ दीहँऽ । नौ महीना के बाद एगो लइका जनम लेतवऽ बाकि ऊ लइकवा बारहे बरस जितवऽ, फिरो मर जतवऽ ।


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