Tuesday, February 12, 2008

1.36 अगरवाल के बेटा

[ कहताहर - श्याम सुन्दर सिंह, ग्राम - बमना, जिला - जहानाबाद ]

एगो अगरवाल हल । ओकरा एगो लड़का हल । बाप के मरला पर लड़कावा तीन पइसा के नोकरी करे लगल । दू पाई में ओकर मतरी सब खर्चा चलावे आउ एक पाई बचावे । एक दिन अगरवलवा माय से कहलक कि कुछ पइसा दऽ तो नोकरी करे जाईं । माय ओकरा एगो रोपेआ देलक । बेटा नोकरी न करके दोकान कर लेलक । एक रोपेआ में हरदी-धनिया-चतपतई लान के बेचे लगल । जब ओकर दोकान चल गेल तो ऊ बाहर से समान लान के बेचे लगल । एक तुरी बाहर जाइत खानी एगो बुढ़िया के तीन लड़की पर तीन चिरु पानी उबिछइत देखलक । ऊ कभी हँसे, कभी रोवे, कभी गीत गावे । ऊ चुपचाप देखलक आउ आउ फिन पूछलक कि तू का करइत हें । बुढ़िया कहलक कि तोर काम हवऽ से तू करऽ, हमर काम जे हे से हम करइत ही । अगरवाल के बेटा कहलक कि जब तक न बतयबे तब तक हम इहाँ से न जबउ । बुढ़िया कहलक कि हम 'भावी' (one who knows future) ही । फिन लकड़हरव पूछलक हमर सादी होयल हे कि ना ? बुढ़िया कहलक कि ना, बाकि आज रात के हो जतवऽ । एकरा पर खिसिया के अगरवलवा के बेटा ओकरा तीन लाती मारलक तो बुढ़िया कहलक कि मारऽ चाहे कुछ करऽ बाकि आज रात के तोर सादी जरूर हो जतवऽ । फिन ऊ सर-समान लेके चलल तो रस्ते में रात हो गेल । ऊ एगो पीपर के खोड़रा में लुका गेल ।


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