Saturday, March 15, 2008

5.17 क्रोध में रहस्य खोले के फल

[ कहताहर - कविता रानी, मो॰-पो॰ - बेलागंज, जिला - गया]

एगो हकीम हल, जेकर नाम लुकमान हल । ऊ सोचऽ हल कि हम सब के जीआवऽ ही, से हमरा कउन मारत ? ओकरा एक दिन जमदूत से बहस भे गेल । हकीम कहलक कि हमरा तूँ काहे ले जयबऽ ? हम तो दूसर के जीआवऽ ही !" जमदूत कहे लगल कि "एकरा से का ? हम आज के अँठवा रोज तोरा ले जबवऽ !" तब हकीम कहलक कि "ई तो होइये नऽ सकऽ हे ।" तब जमदूत कहलक कि "आज से आठ दिन में तूँ जे चाहऽ से कर लऽ । बाकि आँठवा हम तोरा ले जबवऽ ।" हकीम अप्पन घर के खूब सजावे लगल । आँठवा दिन अप्पन घर के एगो कोठरी में बारह कुरसी पर अपने नियन बारह गो अदमी बनौलक - हू-ब-हू सब अपने नियन ।

अब जमदूत अयलक तो हकीम के चीन्हवे नऽ करथ । ऊ बड़ा सोच में पड़ल कि हम हकीम के आज नऽ ले जायेब तऽ जमराज भीर मुँह नऽ देखावे लायक रहब । जमदूत सोचे लगल कि हमरा राजा उहाँ नऽ भी रहे दे सकऽ हथ । से हक्का-बक्का हो के दूत जमराज के लोक में पहुँचल । जमराज कहलन कि "तूँ लोग बड़ा बुड़बक हऽ । एतना भी अकिल नऽ हे कि हकीम के कइसे लाईं !" जमराज कहलन कि "सुन, उहाँ जा के कह कि हकीम तो बड़ा अच्छा घरसजवलऽ हे । एतना अच्छा घर कि मृत्युभवन में कोई नऽ सजवलक हे ।" एकरा बाद फीनों कहिहें कि "एकरा पर एगो गलती हे । एकरा में जे अदमी खड़ा हो जयतो ओही हकीम होयतो !" जमराज से ई बात सुन के जमदूत फिन मृत्युभवन में पहुँचलक । उहाँ जा के एही सब बात कहलक आउ तुरते हकीम पकड़ा गेल । दूत पकड़ के उनका जमराज भीर ले गेलक । खिस्सा खतम, पइसा हजम ।

************ Entry Incomplete ************

No comments: