Wednesday, March 26, 2008

8.09 जतरा के फेरा

[ कहताहर - रामअसीस, मो॰-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो बाबा जी ससुरार गेलन तो रोसगदी करावे ला जल्दीबाजी करे लगलन । ससुर कहलथिन कि ई घड़ी 'भदरा' हे, दू-चार दिन के बाद ई नछत्तर बीत जायत तो रोसगदी कर देबवऽ । बाकि ऊ नऽ मानलक आउ बरियारी रोसगदी करा के मेहरारू के घरे चललन । ससुर कहकथिन कि भदरा में रोसगदी करावे के फल तू पा लेबऽ । बाबा जी मेहरारू के ले ले घरे जाइत हलन तो राह में एगो नदी मिलल । किनारे पर पहुँच के बाबा जी दीसा फीरे लगलन आउ कहार के कह देलन कि तोहनी ऊ पार चल के ठहरिहँऽ । कुछ देर के बाद 'भदरा' बाबा जी के रूप धर के घोड़ा पर चढ़ के अयलन आउ कहलन कि "तूँ लोग अब चलऽ । कहार लोग चललन तो असली बाबा जी पीठिया ठोक के पहुँचलन । ऊ जा के पूछलन कि तू के हें आउ हम्मर सवारी काहे उठवले जाइत हें ? ओकरा पर दूसरका बाबा जी कहलन कि ई हम्मर सवारी हे । ई पर दूनो लड़े लगलन आउ लड़ते-लड़ते एगो गाँव में गेलन तो एगो अदमी कहकइन कि तोहनी पंचयती करा लऽ ।

गाँव के पूरब भर एगो टिल्हा हल जेकरा पर बइठ के पाँच गो अदमी फैसला करऽ हलन । दूनो बाबा जी सवारी ले-ले उहाँ गेलन । उहाँ दूगो बूढ़ा आउ तीन गो जवान मिल के फैसला करे लगलन । टिल्हा पर पंच लोग बइठलन तो ओहनी के पता चल गेल कि बाबा जी 'भदरा' के फेरा में पड़ल हथ । पंच सब मिल के कहलन कि बाबा जी, एगो टूआँ ले आवऽ । ओहिजे के एगो अदमी कुम्हार हीं से टूआँ ला देलक । पंच कहलन कि जे ई टूआँ में से समा के निकल जायत ओकरे ई सवारी होयत । ई सुन के दूसरका बाबा जी खुस हो के दू बार टूआँ में से समा के निकल गेलन । देख के लोग चकित हो गेलन कि अदमी भला टूआँ से समा सकऽ हे । ई देख के असलका पंडी जी जार-बेजार रोवे लगलन कि हमरा ई टूआँ में खाली एगो कइसे जायत ? सरीर तो घुसवे नऽ करत । बाबा जी के रोइत देख के पंच लोग समझौलन कि अभी हमनी फैसला सुनौली नऽ हे । काहे रोइत ही ? बाबा जी थोड़ा संतोष बान्हलन । पंच लोग दोसरका बाबा जी से कहलन कि फिन जरा टूआँ में घुसऽ तो । बाबा जी खुसी से टूआँ में घुस गेलन तो पंच लोग टूआँ के दूनो मुँह झट से बंद कर देलन आउ असलका बाबा जी के कहलन कि "अप्पन सवारी ले जाऽ आउ अब से भूल के भी 'भदरा' नछत्तर में जतरा नऽ करिहँऽ ।"

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