Friday, March 7, 2008

4.15 चचा-भतीजा (कथा 4.07 के रूपांतर)

[ कहताहर -- कविता रानी, मो॰-पो॰ - गया, जिला - गया ]

दूगो छत्री कुटुमतारे चललन । ओकरा में एगो चचा हलन आउ दोसर भतीजा हल । कुछ दूर चलला पर थकान मालूम भेल तो चचा भतीजा से कहलन कि एगो कथा कहऽ । भतीजा कहलक कि हमरा एको कथा न आवे । चचा जोर लगौलक कि कथा से रास्ता भी कटत आउ मन भी बहलत । भतीजवा के कथा तो आवऽ न हले बाकि चचवा के तंग कैला पर गोड़ से एगो जूता निकालके तड़ातड़ जमा देलक । जूता खाके चचा बिगड़लन आउ ओकरा रगेदलन मारे ला । भतीजा भागल आउ कुछ दूर आगे निकल गेल । उहाँ कुछ नट डेरा गिरवले हल । नटवा पूछलक - "रे बाबू, कहाँ से आवइत हे आउ कहाँ जयवे ? भतीजा बोलल - "लंका से आवइत ही आउ पलंका जायव ।" जब नटवा लंका के समाचार पूछलक तब ऊ जवाब देलक कि "कहल सुनइवऽ कि कर देखइवऽ ?" नटवा कहलक कि "भाई, करके देखाइये दे ।" तब भतीजवा कहलक कि तोहनी अपन सब समान जमा करऽ । समान जमा करवा के ऊ सलाई बार देलक । ह-ह-ह-ह आग लहरे लगल । नटवा ओकरा खदेरलक । ऊ भाग चलल आउ कुछ दूर चल गेल कि एगो अहीरिन के मीठा बेचे जाइत देखलक । अहीरिनिया कहकइ कि "एगो कथा कह, जे खट्टा भी लगे, आउ मीठा भी लगे, आउ स्वाद भी लगे, साथे-साथे रस्ता भी कटे ।" तऽ ऊ पीछे से एक मुक्का ओकर टहरी पर मार देलक । टहरी के फूटे से मीठा गिरे लगल आउ कपार से मुँह होइत नीचे तक आ गेल । अहीरिनिया भी रगेदलक । भतीजवा भाग के एगो बजार में पहुँच गेल । ऊ एगो पनेरिन भीरु गेल आउ एक अधेली के पान माँगलक । पनेरनिया कहलक कि "जो-जो, एक अधेली के मिलऽ हे ? जेकर मुँह देखिहें लाल ओकरे में रगड़ लीहें !" ऊ धूम के चलल तो पनेरनिया के बेटिया पान खयले हलई । ओकरे पकड़ के मुँह में ओकर अप्पन जीभ रगड़ देलक । बेटिया भी गरिआवइत रगेदलक बाकि नऽ पकड़ायल तो खदेरलेओलन चारो - चचवा, नटवा, अहीरिनिया आउ पनेरनिया एके जगुन हिो गेलन । सब मिलके जाके थाना पर नालिस कयलन ।

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