Wednesday, March 5, 2008

4.08 अझोलवा बहिनी

[ कहताहर - उर्मिला कुमारी, मो॰ - इटवाँ, पो॰ - हसपुरा, जिला - गया ]

एगो राजा हले । उनका सात गो बेटा आउ एगो बेटी हल । सातो भाई पढ़-लिख के तइयार होके नोकरी करे जाय लगलन तो अप्पन बहिनी से कहलन कि तोरा कोई भउजाई दुःख देतउ तो हमनी से सब बात कह दिहें । समझा के ऊ सब भाई परदेस चल गेलन । अझोलवा बहिनी खाय ला माँगलक तो छोटकी भउजइया कहलक कि "उह्, अइसहीं खाय ला देवउ ! जो करिया कम्मल उज्जर करके आव तो मिलतउ, न तो न मिलतउ ।" कम्मल लेके अझोलवा बहिनी बगीचा में जाके रोवे लगल आउ कहे लगल कि "सातो भइया गेलन परदेस, छवो भउजी कयलन वनवेस ।" ई रोआई सुन के बगइचा के सब चिरई उतर के कहलन कि काहे ला रोइत हें अझोलवा बहिनी ? ऊ कहलक कि "भउजी करिया कम्मल के उज्जर करे ला कहलन हे, बिना सोडा-साबुन के !" से सब चिरई कम्मल पर हग देलन आउ कम्मल उज्जर हो गेल । अझोलवा बहिनी कम्मल लेके गेल आउ कहलक कि "अब दऽ न खाय ला, ई का कम्मल उज्जर हो गेलवऽ ।" भउजइया कहलक कि "अगे दुर्र ! अइसहीं खाय ला मिलतउ ? जो बिन हँसुआ-चिलोही आउ बिना टांगी-गड़ाँसी के झुर्री तोड़ लाव तो खाय ला मिलतउ !" अझोलवा बहिनी फिनो बगीचा में जाके रोवे लगल - "सातो भइया गेलन परदेस, छवो भउजी मोरा बड़ दुख देलन, कउची से झुरिया तोड़ी हो राम !" ई सुन के सब चिरईं मार लोल, मार लोल पेड़ से बड़ी मानी झुर्री गिरा देलन । अझोलवा बहिनी झुर्री लेके घरे चल गेल आउ झुर्री देके कहलक कि "अब दऽ खाय ला । " भउजइअन फिनो कहलन कि "अगे दुर्र ! अबहिये खाय ला देवउ ? जो सौ मन धान बिना ढेंकी-मूसर के कूट के लाव आउ एको चाउर घटतउ तो खाय ला न देवउ !"

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