Tuesday, March 4, 2008

4.03 बढ़ही आउ सोनार के हुनर

[ कहताहर -- कविता रानी, मो॰-पो॰ - गया, जिला - गया ]

एगो सोनार आउ बढ़ही में बड़ी दोस्ती हल । दूनो सगरो साथे रहऽ हलन । एक दफे उनखनी सोचलन कि कहीं नोकरी करे जाय के चाहीं । ई सोच के दूनो इयार परदेश निकललन । कुछ दूर जा के एगो गाँव में ठहर के दूनों इयार विचार कयलन कि कमा के पइसा एके जगुन रखे के चाहीं । बढ़ही अप्पन काम करे लगल आउ सोनार सोना के बेपार करे लगल । ई तरह दूनो बड़ी मानी पइसा बटोर लेलक । कुछ दिन के बाद दूनो इयार घरे चललन आउ कहलन कि घरे चलके पइसा बाँटे के चाहीं । जब घरे अयलन तऽ पइसा बाँटे लगलन । सोनरा कहलक कि हम दू हिस्सा लेववऽ तऽ बढ़ही कहलक कि हमरा आधे-आध करार हे । एही में दूनो के झगड़ा होवे लगल । झगड़ा फरियावे राजा भीजुन गेलन । ओहनी राजा से सब बेयान कहलन । तब राजा साहेब कहलन कि फैसला तुरत होयत । तोहनी अपन-अपन काम देखावऽ । तब सोनार कहलक कि ए राजा साहब, एगो बड़का गो तलाब बनावऽ आउ हमरा छव भर सोना दऽ । तुरत पोखरा खना गेल आउ सोनार के सोना मिल गेल । सोनार एगो बढ़िया मछड़ी बना देलक आउ ओकरा पोखरा में छोड़ देलक । मछड़ी सउँसे तलाब के हिंड़ोर देलक । देखताहर खुस हो गेलन ।

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