Tuesday, March 4, 2008

3.16 पंडी जी आउ बकरी

[कहताहर -- संजू अकलवीछ, मो॰-पो॰ - बेला, जिला - गया]

एगो बड़ा गरीब पंडी जी हलन । दिन माँगथ तो सवा सेर आउ रात माँगथ त सवे सेर । एक दिन उनकर अउरत कहकथिन कि हमनी जवान ही त माँगइत-खाइत ही । बुढ़ारी में के खिआवत ? से एक दिन पंडी जी माँग के अयलन आउ पड़िआइन सात गो लिट्टी बना देलथिन । पंडी जी सातो लिट्टी लेके परदेस चललन । जायते-जायते उनका पिआस लगल । एगो इन्दरा पर नेहयलन आउ खाय ला लिट्टी के पोटरी खोललन । लिट्टी देख के कहे लगलन कि एगो खाईं कि दू गो खाईं कि सातो खा जाईं । तब ओहिजा के पेड़ पर से एगो भूत उतरलक आउ पंडी जी के एगो बकरी देलक । फिन कहलक कि एकरा ले जाके लीप-पोत के कहिहें कि हग बकरी हग । रस्ता में बकरी लेले लौटइत खानी पंडी जी एगो हित ही ठहर गेलन । पंडी जी खा-पी के सूतइत खानी हित से कहलन कि हम्मर बकरी से माँगिहँऽ-उँगिहँऽ न । उनकर हितवन बकरिया के करमात जानऽ हलन । से रात में सवा बित्ता लीप के बकरिया से रोपेया हगवयलन ।

हितराम के ओइसने एगो बकरी हल । से ऊ बकरिया के बदल देलन । पंडी जी बदलल बकरी लेके घरे अयलन । मेहरारू से सवा बित्ता लीपे कहलन, ओकरा बाद बकरिया के हगे कहलन । बकरिया रोपेया हगवे न करे, खाली भेड़ारी हगे । मेहररुआ खूब गारी देलक कि खाली बकरी लेके आयल हे । पंडी जी सात गो लिट्टी लेके ओही इन्दरा पर गेलन आउ ओइसहीं कहलन । फिनो भुतवा उतरल आउ बोलल कि का हवऽ पंडी जी ? तब पंडी जी कहलन कि हम्मर हित बकरिया बदल लेलक हे । भुतवा अबरी उनका सोंटा आउ रस्सी देलक । पंडी जी सोंटा लेके घरे चललन आउ रस्ता में हितवा ही फिर ठहरलन आउ ओकरा रसिया रखे ला दे देलन । रात खानी पड़िआइन कहलन कि ए सोंटा, तनी हम्मर देह सोंट दे । सोंटा पड़िआइन के रस्सी से बान्ह के ओकर देह जमके सोंटे लगल । पड़िआइन चिल्लाये लगलन कि हमरा बचावऽ न तो हम्मर जान गेलवऽ । ऊ घिघिआय लगलन कि हम तोर बकरी दे देइत हिवऽ । तब पंडी जी सोंटा-रस्सी के छोड़ देवे ला कहलन । सोंटा-रस्सी पंडी जी भिर आ गेल । बकरी भी पंडी जी ले लेलन । असल बकरी लेके पंडी जी घरे अयलन, मेहरारू के लीपे-पोते ला कहलन आउ ओहिजा बकरी से कहलन कि हग ! बकरी खूब रोपेया-पइसा हगलक । पंडी जी मालो-माल हो गेलन आउ नीमन से रहे लगलन ।

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