Monday, February 11, 2008

1.07 बड़ डर टिपटिपवा के

[ कहताहर - जगदीश प्रजापति, ग्राम - कचनामा, रामपुर (गया) ]

एक जंगल में एगो बुढ़िया रहऽ हल । ओकरा घोड़ा हल । अन्हार रात हल । बिजुरी चमकइत हल । उहाँ एगो चोर आउ एगो बाघ आयल । चोरवा चाहलक कि अबरी बिजुलिया चमके तो घोड़वा ले भागी । बघवा सोचइत हल कि अबरी बिजुलिया चमके तो घोड़वा के खा जाई । एही समै बुढ़िया बोलल कि डर चोरवा के, न डर बघवा के, भारी डर टिटिपवा के । चोरवा सोचलक कि एकरा न बाघे से डर हे, न हमरे से डर हे, तो टिटिपवा कउन हे ? बघवा भी सोचलक कि एकरा न हमरे से डर हे, न चोरवे से । एतने में बिजुली चमकल तो बाघ मुँह फाड़ के घोड़ा के पकड़े चलल आउ चोर लगाम लेके घोड़ा के लगाम देवे चलल बाकि लगाम घोड़ा के न पर के बघवे के गरदन में पर गेल आउ चोरवा ओकरा पर चढ़ गेल । अब बाघ भागल । चोरवा भी समझे लगल कि हम टिपटिपवा के फेरा में पड़ गेली । बिहान होला पर चोर देखलक कि हम बाघ पर चढ़ल ही तो ऊ कूद गेल आउ एगो पेड़ के खोढर में समा गेल । बाघ तो भागले जाइत हल ।

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