Saturday, February 23, 2008

3.07 बितनवाँ

[कहताहर -- जितेन्द्र प्रसाद, 8 वाँ वर्ग, बीजूबिगहा, जिला - नवादा ]

एक ठो बितनवाँ हलै । ऊ अप्पन मइया के कहलकै ने कि ए माय, तू हमरा एगो भैंस ले दे । हम ओकरा से कमैबे-खयबे । ओकरा मइया हलै ने, से एगो भैंस ले देलकै । बितनवाँ ओकरा चरावे लगलै । एक दिन बितनवाँ भैंसिया के छोड़ के खाय चल अयलै और राजा जी के बगान में बैंगन के पेड़ हलै से बितनवाँ के भैंसिया खा गेलै । बस राजा जी ओकर भैंसिया के काट देल्थी । बितनवाँ कहलकै ने कि ए राजा जी, भैंसिया तो काटिये देला, से ओकर चमड़वा हमरा दे दऽ । राजा जी कहलथिन कि ले जाय न रे ! ओकरा हम की करबै ? बितनवाँ चमड़वा ले लेलकै । बगिया में जाके एक तार के पेड़ हलै -- उहाँ पर चोरन सब चोरा के आवऽ हलै आउ चोरी के समान बाँट हलै । बितनवाँ जाके तरवा पर चढ़ गेल आउ जब रतिया में चोरवन पैसवा बाँटे ले उहाँ पर अयलै आउ बाँटे लगलै तो बितनवाँ ऊ चमड़वा के ऊपरे से गिरलकै । बस, चोरवन कहलकै -- "अरे बाप रे बाप ! एकरा पर भूत रहऽ हौ । से भाग रे मरदे !" तहिया ओखनी सब भाग गेलई । बस, ओकरा पर से बितनवाँ उतरलै आउ सब पैसवा लेके घर चल अयलै आउ मइया से कहलकै कि ले मइया हम एतना पइसा ले अइलो । ओकर कोठी पइसा से भर गेलै ।

बस, रजवा कहलकई ने कि एरे बितनवाँ, तूँ कहाँ से एतना पैसवा लावऽ हें । बितनवाँ कहलकै कि हम ऐसे-वैसे लावऽ हियो । से रजवा भी ओइसहीं कलकै । चोरवन देखलकै आउ ओहनी उहाँ पर नै बाँटलकै । रजवा बितनवाँ पर खिसिया के ओकर घर में आग लगा देलक । बस, बितनवाँ कहलकै कि ए राजा जी, तू तो हम्मर घरवा में अगिया लगाइए देलऽ, से ओकर बानिया (राख) दे दऽ । तब रजवा कहलकई कि ऊ का रखल हो ! से ले जाय नेऽ ! बस, बितनवाँ बोरा में बंद करके बानिया बेचे चल गेलै । जैते-जैते एगो व्यापारी मिललै । ओहू हीरा-मोती-जवाहर बेचऽ हलै । ऊ पूछलकै बितनवाँ से कि कउची बेचऽ हें ? बितनवाँ कहलकै कि हमहूँ हीरा-मोती-जवाहरात आउ बहुत कीमती चीज बेचऽ हीऽ । बेपरिया पूछलकै कि तूँ कहाँ जा हें ? बितनवाँ कह कै कि टेसन दने जा हियो । ओहू कहलकै कि हमहूँ जैवो । तो बितनवाँ कहलकै कि चल ने ! बस, चलते-चलते रात हो गेलै । तब दूनु एगो गाँव में सूत गेलै । अधरतिये में बेपरिया बानियाओला बोरा लेके भाग गेलै । भोर होलै तो बितनवाँ अप्पन बोरा न देख के ओकरओला बोरा लेके घर चल आउ घर पर जाके अपन मइया से कहलक कि -- ले मँइया, बड़ी सन हीरा-मोती जवाहरात ! बस, ओकर समान से घर भर गेलै ।

बस, रजवा देख के जरे लगलै कि बितनवाँ एतना चीज कहाँ से लावऽ हकै । तब ओकरा बोला के बोरा में बंद कर के नदिया में फेंक देलकै । इधर से रोज एगो हाथी पानी पीये ला जा हलै । ऊ दिन पनिया पीये गेलै, बस ओकरे पर अप्पन गोड़ रखलकै आउ बोरवा फट गेलै । बितनवाँ ओकरा में से निकल गेलै आउ हाथी पर चढ़ के घर चलल आवऽ हलै । रजवा देखलकै तो कहलकै कि ए रे बितनवाँ, हमरो बोरवा में बान्ह के नदिया में फेंक लाव ! बस, राजा के बितनवाँ खूब कस के बान्हलकै आउ नदिया में फेंक लौलकै । बस, तहिना हथिया गेलै पनिया पीये लै ने, से रजवा के बोरवा पर लतिया पड़ गेलै आउ रजवा के पेट फट गेलै । रजवा ओहीं पर मर गेलै । खिस्सा गेलो वन में -- समझो अपने मन में !

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