Monday, February 11, 2008

1.28 लीलकंठ राजा

[ कहताहर - सूर्यदेव सिंह, ग्राम - दनई, पो॰ - जाखिम, जिला - औरंगाबाद ]

एगो राजा-रानी हलन । उनका कोई लड़का-फड़का नऽ हल । ढेर दिन के बाद एगो लड़का होयल । ओकर नाम लीलकंठ पड़ गेल । पंडी जी पतरा देखइत खनी कहलन कि जब एकर बिआह होयत आउ कोहवर में जायत तब उहँई पलंग पर मर जायत । से राजा ओही दिन कहलन कि एकर बिआह नऽ करब तो कइसे मरत । जब लड़कवा जवान हो गेल तऽ रानी कहलन कि हम लड़का के बिआह करब । राजा बहुत मना कयलन बाकि रानी नऽ मानलन । लड़का के बिआह होयल आउ कोहबर में जाय के पहिले ऊ कहलक कि जब हम मरब तऽ हमरा जारीहऽ-उरीहऽ नऽ । अइसहीं जाके ठठरी पर चिरारी में रख दीहऽ । जब लड़का पलंग पर सूतल तो सुतले रह गेल । रानी पिपकारा करे लगलन । राजा अप्पन लड़का के बाँस के ठठरी बनवलन आउ अइसहीं जाके मुरदघटिया पर रखवा देलन । इहाँ रानी अप्पन पुतोहू के अछरंग लगवलन कि तूँ कुलच्छन हेयँ तब नऽ हम्मर बेटा मर गेल, से रानी ओकरा बड़ी बड़ी तकलीफ देवे लगल । बेचारी का कर सकऽ हल ? कइसहूँ दुख-तकलीफ सह के रहइत हल ।

*********** Entry Incomplete ***********

No comments: