Saturday, February 16, 2008

2.08 संत-बसंत

[ कहताहर - द्वारिका प्रसाद सिंह, ग्राम - जईबिगहा, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - गया ]

एगो जंगल में गाय आउ सेरनी रहऽ हले । दूनो में खूब दोस्ती हले । दूनो के एगो के दोसर बिना चैन न रहऽ हले । एको छन दूनो अलगे न हो हलन । दूनो गाभिन होयलन आउ दूनो के बच्चा जलमल । ऊ दूनो के बचवन में ही खूब इयारी हो गेल । दूनो एके साथ रहे, खाय-पीय आउ खेले । गते-गते ओहनी सेआन हो गेलन । एक दिन गइया आउ सेरनिया एगो झरना में पानी पीअइत हले । गइया उपरे आउ सेरनिया नीचे पीअइत हले । गइया के मुँहमो के लेरवा सेरनिया के मुँहमाँ में पनिया के साथ गेल । ओकरा बड़ी मीठा लगल । सेरनिआ सोचलक कि जेकर लारे एयना मीठा हे ओकर माँस केतना मीठा होतई । ई सोच के सेरनिया गइया के मार के ओकर माँस खा गेल । ऊ आन के अकेले अप्पन माँद में बइठल हल कि ओकर बचवा आउ बछड़वा आयल । सेरवा अप्पन मइया से पूछलक कि "मँइया, मँउसी न हउ ?" त सेरनिया बोलवे न करे ।

********* Entry Incomplete **********

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