Tuesday, February 12, 2008

1.31 गुलम पीरसिंह

[ कहताहर - सामदेव सिंह, ग्राम - चौरी, जिला - औरंगाबाद ]

कोई सहर में राजा-रानी रहऽ हलन । एक दफे आधी रात में कोई चिरईं के बोल सुनायल तो दूनो राजा-रानी में बहस छिड़ गेलक कि कउन चिरईं बोलइत हे । राजा कहलन कि हंस बोलइत हे आउ रानी बोलन कि सरहँस बोलइत हे । एही पर राजा बाजी लगौलन कि जेकर बात झूठ होयत ऊ राज छोड़ देत । ई तय होयला पर राजा नोकर के बोला के कहलन कि देख आव तो पोखरा पर कउन चिरईं बोलइत हे । रानी विचार कयलन कि राजा के बात झूठ हो जायत तो राजा के राज छोड़ देवे से ठीक नऽ होयत । उनका बिना राज-पाट नऽ चलत । बाकि हम चल जायब तो कोई बात नऽ होयत । ई सोच के सिपाही के बोला के कहलन कि सरहँस भी बोलइत होयत तो राजा से आके कह दीहँ कि हँस बोलइत हे । सभे बात तो तू जनते हऽ ।



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