Monday, February 11, 2008

1.08 तीन राजकुमार

[ कहताहर - सूर्य देव सिंह, ग्राम - तवकला, जिला - गया ]

एक राजा के तीन लइका हलन । तीनो पढ़ऽ हलन । तीनो भाई सलाह करलन कि आज हमनिओं सिकार करे चलऽ । ई सोंच के तीनों बाप भीर आके कहलन । बाप ऊ सबसे कहलन कि जोऽ, बाकि दखिन, उत्तर और पूरब में जइहें ।तीनों भाई तीन दने सिकार ला चल देलन । राजा साहेब के भीर सिकार ला मन न लगल तब ओहू चल देलन । कहऊँ सिकार न मिलल तऽ एक बरके गाँछ तर खाली एगो सुग्गा देखाई पड़ल । तब राजा साहेब उहाँ पहुँचलन । घोड़ा से उतरलन आउ सब पोसाक उतारलन, तीर हाथ में लेके मारे ला चाहलन बाकि बढ़िया सुग्गा देखके मारे ला न सोचलन । हाथ से पकड़े ला सोचलन आउ पेड़ पर चढ़के पकड़े ला चाहलन बाकि ऊ सुग्गा के रूप में दैत्य हल । तुरते राजा साहेब के निगल गेल । राजा के पोसाक पहिन के राजा के रूप बना लेलक, घोड़ा पर चढ़ गेल । मन में विचार करइत हे कि हमरा इनकर घरे कइसे रहे के चाहीं । घरे पहुँच के घोड़ा अस्तबल में बाँध देलक आउ भोजन करे गेल तो रानी कहलन कि राजा साहेब, बड़ी थोड़ा-सा खयलऽ । राजा कहलन कि सिकार न मिलल सेकरे से कम खइली हे । बिहान रास्ता में कर चार गो अदमी के राजा साहब के रूप में दैत्य खा गेल । दूसरा रोज अइसही आठ अदमी के खा गेल । सब परजा उनकर लइकन से कहलन कि ई राजा न बुझाइत हथ, कोई दैत्य मालूम पड़इत हे । ई पर लइकवन खिसिअयलन कि हम्मर बाप अदमी खा हथ ? तब उनकर परजा कहलन कि अन्धार अपने ही देख लेबऽ । तेसरे दिन सतरह अदमी के खाइत देखलन । तब लइकवन जान गेलन कि ई हम्मर बाप न हथ ।
********* Entry Incomplete **********

No comments: