Monday, February 11, 2008

1.10 बाँसुवे का नाच

[ कहताहर - लक्ष्मीकांत पाठक, ग्राम - नवादा (गया) ]

एगो राजा आउ एगो वजीर के लड़का हलई । दूनु में बड़ी दोस्ती हलई । दूनु के पढ़ा-लिखना आउ रहना एके जगह होवो हलई । पढ़-लिख के होसिआर हो गेल तो दूनु अपने में गौर कैलक माय-बाप हमनी के सादी-बिआह कैलक हे कि नञ एकर पता लगावे के चाही । तू हम्मर माय से जा के पूछऽ आउ हम तोर माय से जा के पूछवौ । दूनु एक-दोसर के माय से पूछ आयल आउ ई जान के खूब खुस भेल कि दूनु के विआह बचपन में हे गेले हई । दूनु गौर कर के एक साथ घोड़ा पर सवार होके ससुरार के राह पकड़ लेलक । चलते-चलते एगो चौराहा पर पहुँच गेल । ठहर के दूनु सोचे लगल । इहाँ से दूगो राह दू दने जा हई । राजा के लड़कावा पूछलक ई कि काहे घोड़ा खड़ा कयले तब वजीर के लड़कावा कहलकई कि अकेले तो मन नहिए लगतई । ई से तू कहौ तो हम साथ चलूँ आउ नञ् तो हमरा साथ तो चलौ । राजा के लड़का कहलकई - अच्छा भाय, हमरे ससुरार चलौ ।

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