एगो बढ़ई मिस्त्री दू प्राणी हलन आउ लकड़ी काट के बेचऽ खा हलन । एक दिन मिस्त्री जंगल से लकड़ी काट के लउटइत हलक तो ओकरा पियास लगल । ऊ बोझा रख के पानी पीये गेलक ् तब तक बोझा पर एगो मनिआरा साँप आन के बइठ गेल । ऊ ओकरा भगावे ला एगो लाठी खोजे गेल तो एन्ने सँपवा एगो लाल उगिल के भाग गेल । मिस्त्री आन के देख-दाख के बोझा उठौलक आउ नीचे गिरल लाल पत्थर के ले लेलक । बजार में आन के लकड़ी बेचलक आउ लालोबेचे गेल तो ओकरा एगो साव एक लाख देवे लगलई । ऊ समझलक कि गप्प करइत हे । से दूसर बनिया भीर गेल तो ऊ सवा लाख देवे ला कहकई । बढ़ही सवा लाख में लाल बेच के घरे चल आयल । एन्ने साव वहाँ के राजा हीं नालिस कर देलक कि सेठवा हमर गँहकी के भड़का के लाल खरीद लेलक हे । से राजा बनिया के बोला के सवा लाख दे देलन आउ लाल ले लेलन । राजा सोचलन कि तीन बादसाहत के बराबर एगो लाल होवऽ हे, से ऊ लाल के लेके रानी के दे देलन ।
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