Monday, February 11, 2008

1.23 नाग के बेटा

[ कहताहर - सूर्यदेव सिंह, ग्राम - दनई, जिला - औरंगाबाद ]

एगो सहर में बड़का राजा हलन । उनका धन -सम्पत कोई चीज के कमी नऽ हल बाकि उनका कोई बेटा न हल । राजा दिन-रात फिकिर में रहऽ हलन कि उनका कइसे बेटा होयत । राजा के बड़का किला हल । किला में एगो सरप रहऽ हल । सरप के एक रोज अगाह भेल कि किला के एगो देवाल गिर जायत आउ ऊ चिपा जायत । से ऊ उहाँ से भागे ला चाहलक तइसहीं देवाल गिर गेल आउ साँप चँपा गेल । देवाल गिरे के अवाज सुन के नोकर-चाकर दउड़लन तो देखऽ हथ कि एगो साँप आधा चँपल हे आउ ओकर मुँह से ई दीप न ऊ दीप के एगो बालक निकलल हे । लौड़ी आन के राजा से सब हाल कहलक तो राजा ऊ बच्चा के खूब दुलार से पाले-पोसे लगलन । एक रोज राजा बराहमन के बोला के बच्चा के नाम धरे कहलन । बाबा जी कहलन कि लइका बड़ी भागसाली हे बाकि लइका मुँह से जनम लेलक हे । से अप्पन मुँह से जे घड़ी अप्पन नाम कहत ओही घड़ी ई मनुष सरीर छोड़ देत आउ सरप हो जायत । लइका के नाम 'लाल सहजादा' धरा गेल ।

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