[ कहताहर - देवनारायण मेहता, ग्राम - चौरी, औरंगाबाद ]
एगो हलन पंडित जी ।उनका दुनिया से कुछ मतलब नऽ हल । उनका एगो लड़की हल । आउ ऊ अपने मेहरारू के साथे रहऽ हलन । उनकर मेहरारू हमेसा सोचइत रहऽ हलन कि कइसे राज-पाट चलत । उनकर पतिदेव हमेशा चौबिसो घंटा पूजा करऽ हलन । से ई से उनकर मेहरारू उनका पर बड़ी खिसिया हलथिन । इहाँ तक कि उनका मार-गारी भी दे दे हलथिन । इकरा मारे बाबा जी एकांत जगह में पूजा करे वास्ते चल देलन । चार-पाँच दिन हो गेल बाकि पंडित जी घरे नऽ अयलन । उनकर घरे के सोचलन कि बाबा जी कहाँ चल गेलन । पंडिताइन जी टोला-परोस के लइकन से पूछलन कि बाबा जी के देखले हें बाबू ! लइकन सब कहलन कि हाँ, हम देखली हे । से ऊ अहरा पर जाके दिन-रात पूजा करइत रहऽ हथुन । उनकर मेहरारू कहलथिन लइकवन से कि ए बाबू, तूँ जाके तंग करऽ गन कि ऊ पंडित जी उहाँ से भाग जाथ । जब लइकन उनका बड़ी तंग कयलक तब बेचारे अप्पन बोरिया-विस्तर बाँध के अप्पन गाँव से एकांत जंगल में एगो तलाब पर चल गेलन । उहाँ अप्पन आसन लगौलन ।
एगो हलन पंडित जी ।उनका दुनिया से कुछ मतलब नऽ हल । उनका एगो लड़की हल । आउ ऊ अपने मेहरारू के साथे रहऽ हलन । उनकर मेहरारू हमेसा सोचइत रहऽ हलन कि कइसे राज-पाट चलत । उनकर पतिदेव हमेशा चौबिसो घंटा पूजा करऽ हलन । से ई से उनकर मेहरारू उनका पर बड़ी खिसिया हलथिन । इहाँ तक कि उनका मार-गारी भी दे दे हलथिन । इकरा मारे बाबा जी एकांत जगह में पूजा करे वास्ते चल देलन । चार-पाँच दिन हो गेल बाकि पंडित जी घरे नऽ अयलन । उनकर घरे के सोचलन कि बाबा जी कहाँ चल गेलन । पंडिताइन जी टोला-परोस के लइकन से पूछलन कि बाबा जी के देखले हें बाबू ! लइकन सब कहलन कि हाँ, हम देखली हे । से ऊ अहरा पर जाके दिन-रात पूजा करइत रहऽ हथुन । उनकर मेहरारू कहलथिन लइकवन से कि ए बाबू, तूँ जाके तंग करऽ गन कि ऊ पंडित जी उहाँ से भाग जाथ । जब लइकन उनका बड़ी तंग कयलक तब बेचारे अप्पन बोरिया-विस्तर बाँध के अप्पन गाँव से एकांत जंगल में एगो तलाब पर चल गेलन । उहाँ अप्पन आसन लगौलन ।
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