Monday, February 11, 2008

1.15 पड़िआइन के पुतोह

[ कहताहर - साधुशरण, ग्राम-पो॰ - मखदुमरबाद, जिला - जहानाबाद ]

एगो गाँव में एगो पाँड़े आउ पड़िआइन रहऽ हलन । उनका खाली एगो बेटी हल । बड़ी दिन तक कोई बेटा न भेल । पाँड़े रोज आलसी के तरह सूतल रहथ । ढेर मानी दिन उठ जाय तइयो ऊ न उठथ । एक दिन पड़िआइन कहलन कि तोरा बेटा का होतवऽ । सबेरे उठऽ हइये नऽ, घूमऽ फिरऽ हइये नऽ । से एक दिन पाँड़े जी खूब तड़के उठलन आउ नेहा-दोवा के चलल आवइत हलन । राह में एगो महात्मा खड़ाऊँ पर चढ़ल जाइत हलन । पाँड़े के सबेरे देखलन तो पूछलन कि तूँ ई घड़ी जाइत हें । पाँड़े जी कहलन कि हमरा कोई बेटा नऽ हे । ओही ला जाइत ही । महात्मा जी कहलन कि ई मट्टी ले जो आउ अप्पन मेहरारू के कान में डाल दे । पाँड़े अइसने कयलन आउ उनकर अउरत के गरभ रह गेल । नौ महीना के बाद उनका एगो बेटा पैदा लेलक । ऊ लइका रोज एक जौ बढ़े । थोड़े ही दिन में सयान हो गेल । पड़िआइन चाहलन कि अप्पन दूनो संतान के एके घर में सादी कर दीहीं । बाकी लड़कावा गोलावट सादी करे ला तइयारे न होवे । अंत में माय के जिद्द रोप देला पर बेटा सादी करे ला तइयार हो गेल । एके घर में सादी ठीक हो गेल । पहिले पड़िआइन के बेटी के बराती आयल । सादी-उदी हो गेल । बेटा के बराती जाय के तइयारी भेल तो तो नहछुर के पहिले बेटवा कहलक कि हमरा बड़ी गरमी लगइत हे । मना कइला पर भी ऊ न मानल आउ लोटा-डोरी लेके बाहर कुआँ पर नेहाय चल गेल । उहाँ जा के लोटा-डोरी कुआँ पर रख देलक आउ अपने ओकरा में कूद गेल । एने बराती के जाय में कुबेर होय लगल से खोजाहट भेल । लोग कुआँ पर गेलन तो देखइत हथ कि ऊभ-डूब करइत हथ । उनका निकालल गेल । लोग उनका "इनरडुब्बू" कहे लगलन ।


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