[ कहताहर - सामदेव सिंह, ग्राम - चौरी, जिला - औरंगाबाद ]
एक मुलुक में एगो धनी-मानी सौदागर रहऽ हलन । कुछ दिन के बाद ओकरा पर अइसन विपत्ति पड़ल कि सब धन-जन बरबाद हो गेल । ऊ अन्न-अन्न के बिना तरसे लगल । से ऊ रोज जंगल से लकड़ी काटे आउ बेच के दूनो परानी कइसहूँ गुजर-बसर करे । एक रोज मेहरारू से कहलक कि सीधा में से एक-एक मुट्ठी रोज निकाल के थोड़े चबेनी भूँज दिहँऽ, जंगल में लेले जायब, बड़ी भूख लग जा हे । चबेनी फाँक लेब तो दू बोझा लकड़ी काट के ले आयब ।
एक मुलुक में एगो धनी-मानी सौदागर रहऽ हलन । कुछ दिन के बाद ओकरा पर अइसन विपत्ति पड़ल कि सब धन-जन बरबाद हो गेल । ऊ अन्न-अन्न के बिना तरसे लगल । से ऊ रोज जंगल से लकड़ी काटे आउ बेच के दूनो परानी कइसहूँ गुजर-बसर करे । एक रोज मेहरारू से कहलक कि सीधा में से एक-एक मुट्ठी रोज निकाल के थोड़े चबेनी भूँज दिहँऽ, जंगल में लेले जायब, बड़ी भूख लग जा हे । चबेनी फाँक लेब तो दू बोझा लकड़ी काट के ले आयब ।
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