[ कहताहर - मुद्रिका, ग्राम - सुमेरा, जिला - जहानाबाद ]
एगो हलन राजा जी । उनका इक्के गो लइके हलइन । खाय-पीये के तो कुछ कमिए नऽ हलइन । उनकर बेटा बड़ी पहलवान निकललइन । एक दिन एगो बड़ी मतवाला हाथी सब अदमी के खदेरइत हल । जब ई राजा जी ओकरा देखलन, तब अइसन तबड़ाक मारलन कि हाथी सौ कोस पर जा के गिरल आउ अलअला के मर गेल । राजा जी के बड़ी सन्नर बगइचा हले । ऊ ओकर अप्पन जानो से बढ़ के जानऽ हलन । राजा जी रोज ओहिजे सूतऽ हलन । एक दिन एगो गड़ेरिया उनकर बग में आयल आउ सब भेंड़ी के घुसा देलक । राजा केतनो कहलन कि अप्पन भेंड़ी के निकाल नऽ तऽ मार देबउ । ऊ नऽ मानलक आउ कहलक कि देखऽ हिवऽ तूँ का करऽ हऽ । तब राजा घरे गेलन आउ अप्पन सोंटा ले अयलन । अइसन ऊ सोंटा हल कि राजा जेतना अदमी के मारे ला चाहऽ हलन ओतना अदमी मर जा हल । बगइचा में जाके राजा जी अप्पन सोंटा चलवलन । ओकरा से जेतना भेंड़ी हल आउ जेतना भेंड़ी के चरवाहा हल, सब के मूँड़ी कट गेल । तब उन खनी सब चरवहन के सम्बन्धी सब राजा जी के मारे ला सोचलन । गड़ेरिया सब ओही रात के सात सौ दैत्य के नेवत देलक । उनकर मेहरारू के ई मालूम भेल कि आज राजा जी नऽ बचतन । तब रानी राजा जी के खूब मना कयलन कि आज मत जा । तब राजा कहलन कि हम तुरत आ जाम । एतना कहके राजा बगइचा में चल गेलन ।
एगो हलन राजा जी । उनका इक्के गो लइके हलइन । खाय-पीये के तो कुछ कमिए नऽ हलइन । उनकर बेटा बड़ी पहलवान निकललइन । एक दिन एगो बड़ी मतवाला हाथी सब अदमी के खदेरइत हल । जब ई राजा जी ओकरा देखलन, तब अइसन तबड़ाक मारलन कि हाथी सौ कोस पर जा के गिरल आउ अलअला के मर गेल । राजा जी के बड़ी सन्नर बगइचा हले । ऊ ओकर अप्पन जानो से बढ़ के जानऽ हलन । राजा जी रोज ओहिजे सूतऽ हलन । एक दिन एगो गड़ेरिया उनकर बग में आयल आउ सब भेंड़ी के घुसा देलक । राजा केतनो कहलन कि अप्पन भेंड़ी के निकाल नऽ तऽ मार देबउ । ऊ नऽ मानलक आउ कहलक कि देखऽ हिवऽ तूँ का करऽ हऽ । तब राजा घरे गेलन आउ अप्पन सोंटा ले अयलन । अइसन ऊ सोंटा हल कि राजा जेतना अदमी के मारे ला चाहऽ हलन ओतना अदमी मर जा हल । बगइचा में जाके राजा जी अप्पन सोंटा चलवलन । ओकरा से जेतना भेंड़ी हल आउ जेतना भेंड़ी के चरवाहा हल, सब के मूँड़ी कट गेल । तब उन खनी सब चरवहन के सम्बन्धी सब राजा जी के मारे ला सोचलन । गड़ेरिया सब ओही रात के सात सौ दैत्य के नेवत देलक । उनकर मेहरारू के ई मालूम भेल कि आज राजा जी नऽ बचतन । तब रानी राजा जी के खूब मना कयलन कि आज मत जा । तब राजा कहलन कि हम तुरत आ जाम । एतना कहके राजा बगइचा में चल गेलन ।
बगइचा में ऊ जहाँ सूतल हलन उहाँ एगो पेटारी रख देलन आउ ओकरा चद्दर-उद्दर ओढ़ा के अइसन रख देलन कि लगे, राजा जी सूतल हथ । अपने जाके एगो आम के पेड़ पर चढ़ गेलन । जब रात के सब दैत्य आयल तब कहलक कि अच्छे ! आज तो रजवा के खयवे करबइ । ओकरा में एगो दैतवा कहलकइ कि आज तो इनका खयबे करबहीं बाकि पाँच फेरा घूम के खाहीं, तब ठीक होतई । सब दैत्य पाँच फेरा घूम के राजा के खाय ला ओढ़ावल कपड़ा उठवलक तो देखइत हे कि एगो खाली पेटारी रखल हे । तब सब दैतवा मिल के ऊ सब कपड़े नोचे लगल । तब राजा ऊपरे से अइसन सोंटा झारलन कि सब दैत्य के मुँड़ी कट गेल । राजा पेड़ पर से उतर के सीधे घर चल अयलन । तब सब गड़ेरियन भोरे सुनलन कि राजा सब दैतवन के मार देलन हे । तब ऊ सब सोचलन कि ई राजा के कइसहु मारे के चाहीं । तब सब जा के जंगल में सब बाघ के नेवत देलन, फिनू राजा जी के इयार उनकर मेहरारू से कहलन कि आज उनका ला बड़ी मानी बाघ नेवतलवऽ हे । तब राजा ओइसहीं रात के अप्पन बगइचा में जाय लगलन । तब रानी कहलन कि आज हम तोरा कोई हालत में नऽ जाय देबवऽ । कइसहुँ राजा जी बगइचा में चल अयलन । ओइसहीं बाना बनाके ऊ पेड़ पर चढ़ गेलन । राजा सोंटा से सब बघवन के मार देलन । राजा जी नहिए मरलन । गड़ेरियन के सब उपाय निष्फल भेल ।
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