[कहताहर - पंकजवासिनी, द्वारा सुरेन्द्र साह, पटेलनगर, पटना]
एगो बाबा जी हलन । ऊ बड़ी गोल-गोल बात बतियावऽ हल । उनकर ई खूबी हल कि ऊ कोय के भी पुछला पर इया कोय काम अढ़ैला पर खूब लम्बा-चौड़ा बात बतियावऽ हलन बाकि करऽ कुच्छो न हलन । उनकर ई आदत से भला आदमी के बड़ी परेशानी होवऽ हल ।
एक तुरी ऊ जंगल से चलल आ रहलन हल कि उनका बीच राह में पड़ल एगो शंख मिलल । ऊ शंख के उठा के ले ले अयलन । घरे आके ओकरा धो-धा के ऊ पहले ओकर पूजा कयलन फिनू ओकरा फूँकलन । ओकरा में से अवाज आयल - "सुखी रहऽ बचवा ! जे मन के चाहऽ हवऽ से माँगऽ ।"
बाबा जी के ऊ घरी बड़ी भूख लगल हल । ऊ शंख के परनाम कहलन आउर कहलन - "हमरा बड़ी भूख लगल हे । से हमरा खूब बढ़िया भोजन करावऽ ।" उनकर प्रार्थना सुन के शंख बजलक - "ल लड्डू खाऽ ! पूड़ी खाऽ ! इमरिती खाऽ ! बर्फी खाऽ ! पेड़ा खाऽ ! "बाजा ती खुस होके कहलन - "बस, बस ! पहले इतने दे दऽ ।" ऊ आस जोहइत में बइठल रहल बाकि कुच्छो न आयल । बाद में ऊ अब भी कुछ मँगलन, ऊ शंख बार-बार ओयसने देवे के खूब लम्बा-चौड़ा हाँक देत बाकि कभियो कुच्छो देवे नऽ !
बाबा जी समझ गेलन के ऊ शंख उनकरे नियन खाली हाँके ओला ढपोरशंख हे, जो बात तो खूब लुभावे ओला कहऽ हे बाकि कुच्छो करऽ न हे !
एगो बाबा जी हलन । ऊ बड़ी गोल-गोल बात बतियावऽ हल । उनकर ई खूबी हल कि ऊ कोय के भी पुछला पर इया कोय काम अढ़ैला पर खूब लम्बा-चौड़ा बात बतियावऽ हलन बाकि करऽ कुच्छो न हलन । उनकर ई आदत से भला आदमी के बड़ी परेशानी होवऽ हल ।
एक तुरी ऊ जंगल से चलल आ रहलन हल कि उनका बीच राह में पड़ल एगो शंख मिलल । ऊ शंख के उठा के ले ले अयलन । घरे आके ओकरा धो-धा के ऊ पहले ओकर पूजा कयलन फिनू ओकरा फूँकलन । ओकरा में से अवाज आयल - "सुखी रहऽ बचवा ! जे मन के चाहऽ हवऽ से माँगऽ ।"
बाबा जी के ऊ घरी बड़ी भूख लगल हल । ऊ शंख के परनाम कहलन आउर कहलन - "हमरा बड़ी भूख लगल हे । से हमरा खूब बढ़िया भोजन करावऽ ।" उनकर प्रार्थना सुन के शंख बजलक - "ल लड्डू खाऽ ! पूड़ी खाऽ ! इमरिती खाऽ ! बर्फी खाऽ ! पेड़ा खाऽ ! "बाजा ती खुस होके कहलन - "बस, बस ! पहले इतने दे दऽ ।" ऊ आस जोहइत में बइठल रहल बाकि कुच्छो न आयल । बाद में ऊ अब भी कुछ मँगलन, ऊ शंख बार-बार ओयसने देवे के खूब लम्बा-चौड़ा हाँक देत बाकि कभियो कुच्छो देवे नऽ !
बाबा जी समझ गेलन के ऊ शंख उनकरे नियन खाली हाँके ओला ढपोरशंख हे, जो बात तो खूब लुभावे ओला कहऽ हे बाकि कुच्छो करऽ न हे !