Tuesday, February 12, 2008

1.37 चरवाहा से राजा

[ कहताहर - ललन प्रसाद सिंह, ग्राम - दनई, जिला - औरंगाबाद ]

एगो रजा हलन । ऊ बार-बार अप्पन किला बनावऽ हलन आउ गिर जा हल । से एक तुरी सब अमला-कैला के गोजी-लाठी लेके खड़ा रहे कहलन कि अबरी किला के डाहे तो ओकरा जान मार दीहँई । ई बात ओहिजा के नगवा सुनइत हल से ऊ निकल के भागल । लोग ओकरा खदेरलन । रस्ता में एगो गोरखिया (चरवाहा) मिलल, जेकरा से नगवा बड़ी घिघिआयल कि हम गेड़र मार के बइठ जात ही । तू ऊपरे से बइठ जो तो हम बच जायम । चरवाहा पहिले नाकर-नुकुर कैलक बाकि नाग के एगो चीनी घइला देबे ला कहे पर ओकरा पर बइठ गेल । राजा के अदमी आन के आगे बैठ गेलन, नाग बच गेल । नाग के कहल मोताबिक चरवाहा के एगो घइला देलक आउ कहलक कि एकरा में पानी भरके झाँक दिहें आउ गरम करिहें । जब भाफ निकले लगतउ तो ढँकना उघार दिहें । ओकरा में से एगो लड़की निकलतउ । चरवाहा ओइसहीं कैलक आउ लड़की निकलल तो देख के सब चरवाहा भाग गेलन । बाकि नाग के बचावेओला चरवाहा रह गेल तो लड़किया पूछकई कि तोर घर कहवाँ हवऽ । चरवहवा कहलक कि ऊ का झोपड़िया लौकइत हे । दूनो अप्पन झोपड़ी में चल गेलन । उहईं रहे लगलन । एक दिन लड़किया कहलक कि तू सब के गोरू चराना बंद कर दऽ आउ राजा से घर बनावे ला जमीन माँगऽ । चरवाहा राजा भिरु जमीन ला गेल तो राजा कहकथिन कि जने जेतना जमीन मिले उहाँ घर बना के रहऽ गन ।


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