Tuesday, February 12, 2008

2.04 राजा, रानी आउ मोतीकुँअर

[ कहताहर - द्वारिका प्रसाद सिंह, ग्राम - जईबिगहा, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - गया ]

एगो राजा रहे । ऊ एक दिन जंगल में सिकार खेले गेल । दिन भर हरान होवे पर भी एको सिकार न मिलल । राजा निरास होके लौट रहल हल कि रास्ता में पालकी मिलल । ऊ में लगल सोलहो कहार बहुत कीमती कपड़ा पेन्हले हलन । राजा सोचलक कि ई पालकी के कहार तो अइसन सुन्नर हे तो ई पालकी ओली केतना सुन्नर होयत ? राजा ओकरा देखे के वास्ते पालकी से कुछ दूरी पर चले लगल । रजवा रात भर साथे चलल पर पालकीओली के देख न सकलन । ऊ पालकीओली रानी जब नदी में नेहाय लगल तब पालकी से नदी तक परदा लगवा देलक । जब भी पालकी से से बाहर निकले तो परदा लगवा लेवे । ई तरह राजा दिन भर पालकी के पीछे लगल रहल बाकि ओकरा देख न सकल । आखिर राजा निरास हो गेल । पालकीओली के देखे के जब कोई आसा न रहल तब हार-पार के रजवा अप्पन घर के ओर चले ला मुड़ल, तो देखलक कि एगो पोटरी पलकिया पर से गिरल । रजवा घुर के ऊ पोटरिया उठा के देखलक तो ओमें हरदी, सुपारी, मोती आउ कुमकुम से रंगल थोड़ा सन चाउर हल । राजा ऊ सब के कोई मतलब न समझलक । बाकि रजवा के मन न लगे । ऊ बड़ी उदास रहे लगल । खाना-पीना छोड़ देलक । रनिया पूछे तो बोलवे न करे । आखिर रनिया के ऊ पोटरिया देके कहलक कि जब तक एकर मतलब न जानब तब तक हमरा चैन न हे । रनिया ऊ पोटरिया देख के कहलक कि ई सब के मतलब हम बता देब । अपने खा-पीअऽ । हम ई पोटरिया देवेओली से भेट भी करा देवो । राजा खयलक-पीलक तब रनिया ऊ पोटरिया के मतलब बतावे लगल । रनिया कहलक कि हरदी के माने हे कि पोटरिया देवेओली हरदीनगर के रहेओली हे । मोती के माने हे कि मोतीकुँअर ओकर नाम हे । सुपारी के मतलब हे कि ओकर घर के पास सुपारी के पेड़ हे । कुमकुम से रंगल चाउर के मतलब कि ऊ तोरा चाहऽ हे । रनिया कहलक कि जब राय होय तो ओकर घरे चलल जाय ।

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