एक हलक राजा । ओकरा बड़ी मानी रानी हले । ओकर एगो रानी के एगो अइसन बेटा हले कि दिन में तो ऊ मुरगा रहे आउ रात में अदमी बन जाय । एक दिन मुरगावा चरे ला बाहर गेल । चरते-चरते ओकरा एगो सोना के गुल्ली मिलल । ऊ घरे आने के धर देलक । दोसर दिन फिनो चरे गेल तो ओकरा एगो आउ गुल्ली मिलल । ओकरा लेके आगे गेल तो एगो अदमी मिलल । ओकरा से मुरगावा कहलक कि हम्मर सोना के गुल्ली ले ले आउ चाउर से कान भर दे । दोसर राजा के बेटी एगो लाल देखलक तो माय से कहलक कि एगो सोना के गुल्ली ले ले आउ चाउर से मुरगवा के कान भर दे । जब ओकर कान भराय लगल तो राजा के सब कोठी के चाउर काली हो गेल, तइयो मुरगवा के कान नऽ भरायल । तब फिनो मुरगवा कहलक कि एकमुट्ठी आउ भर दे । एक मुट्ठी चाउर आउ डाललक तो ओकर कान भर गेल । मुरगा लाल दे के आगे बढ़ल तो ओकरा एगो बकरी के चरवाहा मिलल । ओकरा से ऊ कहलक कि जाके हम्मर माय से कह दे कि सब कोठी-भाँड़ी अजवार के रखत । मइया कहकई कि मुरग हो के कहाँ से अन्न-धन लावत घर जाके मुरगा बोले लगल - "मइयाव, कोठिया अजबरिहें, मइया, घरवा अजबरिहें ।" आउ मुरगा अप्पन कान झारलक तो घर-अंगना चाउर से भर गेल । अगल-बगल के गोतिया-नइया अपन बेटा-बेटी के मारे लगलन आउ कहलन कि मुरगा हो के चाउर-दाल लावइत हे आउ तोहनी अदमी हो के कुछो नऽ करे ।
********* Entry Incomplete **********
No comments:
Post a Comment