Saturday, March 8, 2008

4.28 एगो ब्राह्मण के खिस्सा (कथा 4.11 के रूपांतर)

[ कहताहर - जितेन्द्र प्रसाद, ग्राम - बिजूबिगहा, जिला - नवादा]

कोय गाँव में एगो ब्राह्मण हलै । ओकरा एकी गो बेटा हलै । कुछ दिन में बप्पा मर गेलै । ओकर बेटवा काम-किरिया कर के निफिकिर भेलै । कुछ दिन के बाद माय-बेटा में झगड़ा होलै । तब बेटवा रूस करके भाग के जाय लगलै । केतनो समझावे से नै मानलै । भागते-भागते रस्तवा में एगो बूढ़ा मिललै । बुढ़वा कहलथिन जे "तूँ काहे ला भागल जा हें ? तोरा जे जजमनिका हौ से के सम्हालतौ ?" त ऊ कहलकै कि हम जजमनिका नै सम्हारवै । हमरा पढ़े के मन करऽ है ।" तब बुढ़वा कहलथिन कि "तूँ अप्पन जात से हीं पढ़िहें, चाहे कोई कुछ कहौ ।" ऊ तीन-चार पाठशाला में पूछलकै तो ओकर जाति के नै मिललै । ओकर सादी होयल हलै । ऊ घूमते-घामते अप्पन ससुरार चल गेलै । ओकर ससुर पढ़ावऽ हलथिन तो पूछलकै कि इहाँ कउन जात पढ़ावऽ हथिन ? सब कहलकै कि इहाँ ब्राह्मण पढ़ावऽ हथिन । तब पूछलकै कि "ए भाय, इहाँ हमहुँ पढ़वै । से गुरुजी पढ़ौथिन ?" तब पूछे पर पता चललै कि गुरु जी पढ़ौथिन । ऊ तैहिना से उहाँ पढ़े लगलै । ओहीं से ओकरा खाय ला आवऽ हलै बाकि उहाँ ऊ लड़कावा केकरौ नै चीन्हलै, आउ ओकर ससुररिया के सभे परिवार ओकरा चीन्हऽ हलै । ओही पठसलवा में एगो राजा के लड़का भी पढ़ऽ हलै । ऊ राजकुमार एक दिन खाना खाते देखलकै कि गुरु जी के लड़किया बड़ा बढ़िया है । से ऊ ओकरा से सादी करे ला सोचलकै आउ अपन माय-बाप से सब कहानी कह देलकै । ओकर बाप गुरु जी के अप्पन बेटिया से ओकर सादी ला कहलकै तो ऊ मंजूर कर लेलथिन । तब उनकर बेटिया कहलकै कि "हमरा घर से लेके अपन घर तक सोना के रास्ता बना दऽ आउ तालाब के बीच में एगो 'कपड़-घर' बना दऽ तब हम सादी करवै । राजा सब कुछ तइयार कर देलकै ।
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