[कहताहर - सूर्यदेव सिंह, ग्राम - दनई, पो॰ - जाखिम, जिला - औरंगाबाद]
एगो राजकुमार के डोम से बड़ी इयारी हल । दूनो जुआ खेलऽ हलन । एक दफे राजकुमार डोम के हाथे सब कुछ हार गेलन । राज-पाट हारला के बाद अप्पन बहिन के भी दाव पर रख देलन आउ ओकरो हार गेलन । डोम राजपाट न ले के उनकर बहिन के मांगलक तऽ ऊ कहलक कि "हम्मर बहिन फूल के बड़ी सौखीन हे । से तू जा के पोखरा में बइठ के फूल देखइहें । बहिन फूल लेवे जायत तो तू पकड़ लिहें !"
एकरा बाद राजा अप्पन माय से कहलक कि कल हम अपने से हर जोते जायम । ऊ कहलन कि राजा के बेटा होके तू हर जोते कइसे जइबें ? बाकि राजकुमार नऽ मानलन आउ हर-बैल ले के खेत पर चल गेलन । जब पानी पीये के बेरा भेल तब माय अप्पन बेटी दीहिलो के नस्ता ले के भेजलक । दीहिलो भाई के नस्ता करावइत हल तो ओकरा पोखरा में कमल के फूल लौकल । से ऊ भाई से पूछ के फूल ला पोखरा में हेल गेल । भर घुट्ठी पानी में गेला पर फूल नऽ मिलल तो दीहिलो गीत गयलक - भर घुट्ठी पानी में अइली हो भइया, तइयो न मिलल कमल केरा फूल ! राजकुमार कहलन कि "आउ ओते जो बहिनी, आउ ओते जो !"
बहिन कमर भर पानी में, फिन छाती भर पानी आउ फिर मांग भर पानी में फूल ला गेल बाकि फूल नऽ पकड़ायल । बहिन कहलक - माँग भर पानी में अइली हो भइया तइयो नऽ मिलल कमल केरा फूल ! राजकुमार कहलन - आउ ओते जो बहिनी ! आउ ओते जो ! .... ...
माँग से सेनूर धोआयल हो भइया,
तइयो न मिलल कमल केरा फूल ।
ओतने में पानी में बइठल डोम, राजकुमार के बहिन के ले के बइठ गेल । जब राजकुमार हर-बैल ले के घरे अयलन तो माय, दीहिलो बेटी ला पूछलन तो ऊ बता देलन कि मायँ, बुझी भुला गेल ! सगरो खोजाय लगल । तब दीहिलो के पोसल सुग्गा ओही पोखरा के पेड़ पर जाके अपन दुःख गावे लगल -
केने हहीं, केने गेली हारिल गे दीहिलो,
बेरिया मारत मूसराधार ।
सुनके पोखरा में से दीहिलो बोलल - का कहीं,
का करीं हारिल रे सुगना, भइया हारल, डोम जीतल ।
ओही घड़ी दीहिलो के ससुरार से नेयार आवइत हल । ई सब सुनके ऊ उलटे गोड़ी लौट गेल आउ राजा के सब खिस्सा सुनौलक । राजा नोकर-चाकर सब के लेके पोखरा पर आ गेलन आउ पोखरा उविछाय लगल । पोखरा सूख गेल तो ओकरे में से राजा के लड़की दीहिलो आउ डोम निकलल । फिन ओही पोखरा में डोम के गाड़ देल गेल आउ लड़की अप्पन बिआही मरद के साथ ससुरार चल गेल । उहाँ जाके अपन पति के साथ बढ़िया से राज-पाट करे लगल ।
एगो राजकुमार के डोम से बड़ी इयारी हल । दूनो जुआ खेलऽ हलन । एक दफे राजकुमार डोम के हाथे सब कुछ हार गेलन । राज-पाट हारला के बाद अप्पन बहिन के भी दाव पर रख देलन आउ ओकरो हार गेलन । डोम राजपाट न ले के उनकर बहिन के मांगलक तऽ ऊ कहलक कि "हम्मर बहिन फूल के बड़ी सौखीन हे । से तू जा के पोखरा में बइठ के फूल देखइहें । बहिन फूल लेवे जायत तो तू पकड़ लिहें !"
एकरा बाद राजा अप्पन माय से कहलक कि कल हम अपने से हर जोते जायम । ऊ कहलन कि राजा के बेटा होके तू हर जोते कइसे जइबें ? बाकि राजकुमार नऽ मानलन आउ हर-बैल ले के खेत पर चल गेलन । जब पानी पीये के बेरा भेल तब माय अप्पन बेटी दीहिलो के नस्ता ले के भेजलक । दीहिलो भाई के नस्ता करावइत हल तो ओकरा पोखरा में कमल के फूल लौकल । से ऊ भाई से पूछ के फूल ला पोखरा में हेल गेल । भर घुट्ठी पानी में गेला पर फूल नऽ मिलल तो दीहिलो गीत गयलक - भर घुट्ठी पानी में अइली हो भइया, तइयो न मिलल कमल केरा फूल ! राजकुमार कहलन कि "आउ ओते जो बहिनी, आउ ओते जो !"
बहिन कमर भर पानी में, फिन छाती भर पानी आउ फिर मांग भर पानी में फूल ला गेल बाकि फूल नऽ पकड़ायल । बहिन कहलक - माँग भर पानी में अइली हो भइया तइयो नऽ मिलल कमल केरा फूल ! राजकुमार कहलन - आउ ओते जो बहिनी ! आउ ओते जो ! .... ...
माँग से सेनूर धोआयल हो भइया,
तइयो न मिलल कमल केरा फूल ।
ओतने में पानी में बइठल डोम, राजकुमार के बहिन के ले के बइठ गेल । जब राजकुमार हर-बैल ले के घरे अयलन तो माय, दीहिलो बेटी ला पूछलन तो ऊ बता देलन कि मायँ, बुझी भुला गेल ! सगरो खोजाय लगल । तब दीहिलो के पोसल सुग्गा ओही पोखरा के पेड़ पर जाके अपन दुःख गावे लगल -
केने हहीं, केने गेली हारिल गे दीहिलो,
बेरिया मारत मूसराधार ।
सुनके पोखरा में से दीहिलो बोलल - का कहीं,
का करीं हारिल रे सुगना, भइया हारल, डोम जीतल ।
ओही घड़ी दीहिलो के ससुरार से नेयार आवइत हल । ई सब सुनके ऊ उलटे गोड़ी लौट गेल आउ राजा के सब खिस्सा सुनौलक । राजा नोकर-चाकर सब के लेके पोखरा पर आ गेलन आउ पोखरा उविछाय लगल । पोखरा सूख गेल तो ओकरे में से राजा के लड़की दीहिलो आउ डोम निकलल । फिन ओही पोखरा में डोम के गाड़ देल गेल आउ लड़की अप्पन बिआही मरद के साथ ससुरार चल गेल । उहाँ जाके अपन पति के साथ बढ़िया से राज-पाट करे लगल ।
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