[ कहताहर - राजीव कुमार 'राज', साहित्य सदन, टेकारी रोड, पटना ]
महाकवि भारवि बाल्यकाल से ही सुन्नर काव्य रचे लगलन हल, जेकर चारों ओर धूम मचल हल । बाकि महाकवि भारवि के बाबू जी, जे अपने भारी पंडित हलन आउ कविताई भी करऽ हलन, ऊ अप्पन पूत के कभीयो बड़ाई न करऽ हलन । एह बात से महाकवि भारवि के मन बड़ी उदास रहऽ हल । अन्त में अप्पन बाबू जी पर एतना खीझ गेलन कि उनकर हत्या के विचार कयलन ।
महाकवि भारवि बाल्यकाल से ही सुन्नर काव्य रचे लगलन हल, जेकर चारों ओर धूम मचल हल । बाकि महाकवि भारवि के बाबू जी, जे अपने भारी पंडित हलन आउ कविताई भी करऽ हलन, ऊ अप्पन पूत के कभीयो बड़ाई न करऽ हलन । एह बात से महाकवि भारवि के मन बड़ी उदास रहऽ हल । अन्त में अप्पन बाबू जी पर एतना खीझ गेलन कि उनकर हत्या के विचार कयलन ।
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