Friday, March 7, 2008

4.21 तोतराह बेटा

[ कहताहर - धर्मेन्द्रनाथ, मो॰ - मगहीलोक, पो॰ - बेलागंज, जिला - गया]

एगो गिरहथ के चार गो बेटा हल । एहनी तोतराह बोलऽ हलन । से ओकरा सादी करे ला जेतना अगुआ आवथ ऊ सब घुर जाथ । गिरहथवा सोच में पड़ गेल कि एहनी के कइसे बिआह होयत । अगुअवन के सामने लइकवन कुछ बोल देवे आउ ओहनी तोतराहा समझके भाग जाथ । एक दिन ऊ अपन बेटवन के समझौलक कि जब अगुअवन अयथुन तऽ तोहनी कुच्छो बोलवे न करिहें । केतनो पूछथुन तइयो न बोलिहें । कुछ दिना के बाद ओहिनी के सादी ला फिनो अगुअवन अयलन । लइकवन के देखे ला बोलावल गेल । ओहनी के कुछ पूछल जाय तऽ कुच्छो बोलवे न करे । अगुअवन समझलन कि लइकवन गूँग हे । तऽ बप्पा कहलक कि एहनी बोलऽ हे तो आँधी आ जा हे । घर में रोज महाभारते होल रहऽ हे । ई घड़ी खाली अपने से सरमाइत हे । सास-ससुर के सामने सरमाय के ही तो मोल हे । अगुअवन समझलन कि लइकन खूब सुसील हे । इनकरे से हम अप्पन बेटिअन के सादी कर दीहीं, तो बड़ा अच्छा होयत । से ऊ लइकवन के पसंद कर लेलन । खाय-पीये (ला) बने लगल । खूब खातिर-बात होवे लगल ।

लइकवन के मइया बजका बनावे लगल । अप्पन बेटवन के ऊ बइगन लावे ला कहलक तो ओहनी दूरा के सामनहीं बइगन के खेत में चल गेल । अगुअवन ओहिजे कुआँ पर नेहाइत हलन । लइकवन बइगन तोड़इत हलन कि एगो चूहा के बच्चा निकल के भागल । बड़का बोलल - "अले तुतली, तुतली, तुतली ।" मँझिला कहलक - "तहाँ, तहाँ, तहाँ ?" ई सुन के सँझिला डाँटकई - "मइया ता कहलकियो हल ?" अंत में छोटका जोर से कहलक कि "हम तो तु्प्पे-तुप्प ।" एहनी सन के ई तरह से बतियते सुन के अगुअवन तो दंग रह गेलन । उनकर बोली सुन के ऊ जान गेलन कि लइकन काहे न बोलइत हलन । अब तो ऊ खाय-पीये ला भी न चाहलन । नेहा के अप्पन छड़ी-छाता माँगलन आउ घर के रस्ता नापलन ।

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