[ कहताहर - श्यामदेव सिंह, मो॰-ग्राम - चौरी, पो॰ - गया, जिला - गया]
एगो गाँव में एगो किसान हल । ओकरा एगो बेटा हल । ऊ बड़ी गाभी करऽ हल । सबसे मजाक करइत रहऽ हल जेकरा से लोग ओकरा 'गभिया' कहऽ हलन । असाढ़ के महीना में जब पानी खूब होयल हल, किसान खेत में सेरहा बुने ला हर जोत रहल हल । ऊ बेटा से कहलक कि जा के माय से बुने ला सेरहा माँग लावऽ । लड़का घरे आन के माय से कहलक कि बाबू जी सेरहा कूट के खीरा बनावे ला कहकथुन हे । माय ई सुन के बीहन वाला सेरहा के कूट-चूर के खीर-पूरी बनौलक बाकि गभिया डर के मारे घर छोड़ के भाग गेल । किसान खेत में सेरहा के आसा में साँझ तक खेत में रहल बाकि बीहन नऽ आयल तो खीसिआयल घरे हर-बैल ले के पहुँचल । ऊ अप्पन औरतिया से पूछलक कि "छवड़ा कहाँ गेलउ हे ?" ऊ कहकई कि "कहके तो गेलवऽ हे कि सेरहवा ओला धान कूट के रख ले हिवऽ।" ऊ माथा ठोकलक बाकि का करे, साँझ हो गेल हल, घर में बीहन भी नऽ हल । से ऊ खीर-पूरी खा के लड़कवा के खोजे निकलल बाकि ओहू नऽ मिलल ।
एगो गाँव में एगो किसान हल । ओकरा एगो बेटा हल । ऊ बड़ी गाभी करऽ हल । सबसे मजाक करइत रहऽ हल जेकरा से लोग ओकरा 'गभिया' कहऽ हलन । असाढ़ के महीना में जब पानी खूब होयल हल, किसान खेत में सेरहा बुने ला हर जोत रहल हल । ऊ बेटा से कहलक कि जा के माय से बुने ला सेरहा माँग लावऽ । लड़का घरे आन के माय से कहलक कि बाबू जी सेरहा कूट के खीरा बनावे ला कहकथुन हे । माय ई सुन के बीहन वाला सेरहा के कूट-चूर के खीर-पूरी बनौलक बाकि गभिया डर के मारे घर छोड़ के भाग गेल । किसान खेत में सेरहा के आसा में साँझ तक खेत में रहल बाकि बीहन नऽ आयल तो खीसिआयल घरे हर-बैल ले के पहुँचल । ऊ अप्पन औरतिया से पूछलक कि "छवड़ा कहाँ गेलउ हे ?" ऊ कहकई कि "कहके तो गेलवऽ हे कि सेरहवा ओला धान कूट के रख ले हिवऽ।" ऊ माथा ठोकलक बाकि का करे, साँझ हो गेल हल, घर में बीहन भी नऽ हल । से ऊ खीर-पूरी खा के लड़कवा के खोजे निकलल बाकि ओहू नऽ मिलल ।
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