[ कहताहर - लालमणि कुमारी, मो॰-पो॰ - बेलागंज, जिला - गया]
एक समय के बात हे कि एगो राजा के दरबार में सात गो मुंसी जी रहऽ हलन । ओहनी सब देवान-पटवारी के काम करऽ हलन । बइठल-बइठल राजा के बुरवक बना के धन भी ठग ले हलन । ओहनी के देह से तो कोई काम होयबे नऽ करऽ हल । एक दिन के बात हे कि राजा साहेब एगो लाला जी के कहलन कि जा के कोयरी के खेत में से मुरई कबार के ले आवऽ । मुंसी जी देह से कोई काम न ऽ करलो चाहऽ हलन । ई भी डर हल कि एक तुरी कोई काम कर देव तो राजा साहब तुरी-तुरी काम करे ला कहतन । से ई बात सोच के लाला जी खेत में गेलन आउ मुरई कबारे में जोर लगावे लगलन । मुरई कबरवे न करे । दरअसल ऊ मुरई कबारे ला नऽ चाहऽ हलन । राजा जी लाला जी के ई नाटक देखलन कि ऊ मुरई कबारत-कबारत थक गेलन हे तो ऊ फिनो छवो मुंसी जी के भेजलन । सातो मुंसी जी खेत में पहुँच के अपना में बतिअयलन कि मुरई कबारे में हमनी सब ला घाटा हे - हमनी से कलम के साथे देह से भी काम लेवल जायत । से मुरई कबार के नऽ ले चले के चाहीं बाकि कबारे के ढोंग करने हे, नऽ तो नोकरी से निकाल देल जायत । से ओहनी सातो मुंसी जी एके तुरी मिल के मुरई कबारे लगलन । कोइरी के खेत अँहड़ गेल । ढेर मानी मुरई रउँदा गेल । ई हाल कोयरी झोपड़ी में बइठल देखइत हल । ओकरा खीस तो वर रहल हल बाकि राजा के डरे कुछ बोलइत नऽ हल । ढेर देरी के बाद ओकरा नऽ रहायल तो झोपड़िये में से गते टुभकल - "मुरगी मेलान आउ कायथ पहलवान ?" ई बात सुन के ओहनी सातो लजायल नियन कैले राजा भिरु गेलन । राजा खाली हाथ देख के ओहनी से मुरई के बात पूछलन तो ओहनी कहलन कि "सरकार, कोयरिया हमनी के ठिसुआ के भगा देलक !"
एक समय के बात हे कि एगो राजा के दरबार में सात गो मुंसी जी रहऽ हलन । ओहनी सब देवान-पटवारी के काम करऽ हलन । बइठल-बइठल राजा के बुरवक बना के धन भी ठग ले हलन । ओहनी के देह से तो कोई काम होयबे नऽ करऽ हल । एक दिन के बात हे कि राजा साहेब एगो लाला जी के कहलन कि जा के कोयरी के खेत में से मुरई कबार के ले आवऽ । मुंसी जी देह से कोई काम न ऽ करलो चाहऽ हलन । ई भी डर हल कि एक तुरी कोई काम कर देव तो राजा साहब तुरी-तुरी काम करे ला कहतन । से ई बात सोच के लाला जी खेत में गेलन आउ मुरई कबारे में जोर लगावे लगलन । मुरई कबरवे न करे । दरअसल ऊ मुरई कबारे ला नऽ चाहऽ हलन । राजा जी लाला जी के ई नाटक देखलन कि ऊ मुरई कबारत-कबारत थक गेलन हे तो ऊ फिनो छवो मुंसी जी के भेजलन । सातो मुंसी जी खेत में पहुँच के अपना में बतिअयलन कि मुरई कबारे में हमनी सब ला घाटा हे - हमनी से कलम के साथे देह से भी काम लेवल जायत । से मुरई कबार के नऽ ले चले के चाहीं बाकि कबारे के ढोंग करने हे, नऽ तो नोकरी से निकाल देल जायत । से ओहनी सातो मुंसी जी एके तुरी मिल के मुरई कबारे लगलन । कोइरी के खेत अँहड़ गेल । ढेर मानी मुरई रउँदा गेल । ई हाल कोयरी झोपड़ी में बइठल देखइत हल । ओकरा खीस तो वर रहल हल बाकि राजा के डरे कुछ बोलइत नऽ हल । ढेर देरी के बाद ओकरा नऽ रहायल तो झोपड़िये में से गते टुभकल - "मुरगी मेलान आउ कायथ पहलवान ?" ई बात सुन के ओहनी सातो लजायल नियन कैले राजा भिरु गेलन । राजा खाली हाथ देख के ओहनी से मुरई के बात पूछलन तो ओहनी कहलन कि "सरकार, कोयरिया हमनी के ठिसुआ के भगा देलक !"
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