[ कहताहर - नन्हें, ग्राम-पो॰ - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]
एगो हलन साधु जी । उनकरा बड़ी संगी-साथी आवऽ हलन । उनकर मेहररुआ बड़ी खिसिया हल । रोज-रोज साधु जी एगो-दूगो के खियावऽ हलन । सेही गुने साधु के मेहररुआ बड़ी रंज होवऽ हल । मेहररुआ बड़ी बदमास हल । एक दिन साधु के हिआँ सोरह गो साधु आ गेलन । साधु जी ऊ सब सधुअन के खिलावे ला उपाय रचलन आउ कहलन कि तोर सब भाई आयल हथुन । जल्दी से खाय ला बनावऽ । तब सधुआइन तुरते खाय ला बनौलन आउ अपन भाई जान के सब के नस्ता करौलन । फिन सधुआइन खाना बनौलन - सोरहो प्रकार के तरकारी आउ बासमती के भात आउ रहर के दाल । सधुआइन साधु से कहलन कि कोई भाई अभी भेंट करे न आयल से एकाध गो के भेंट करे ला भेज दऽ । साधु जी कहलन कि एती घड़ी रात में भाई से भेंट करे लगवऽ तो गाँव के लोग कहतथुन कि ई रात में के तो काहे ला रोइत हे । से सधुआइन कहलन कि अन्हारहीं भेंट करब ।
अब साधु लोग के बीज्जे कराके खिआवल जाइत हल तब सधुआइन दुआरी से मुँह निकाल के देखलन तो सोरह गो जटाओला साधु खा रहल हे । जटा देख के सधुआइन के लहर तरवा से कपार पर चढ़ गेल । ऊ खूब गारी बके लगलन - "चाहे खाय खो चाह गाय खो ।" तब सधुअन कहलन कि "गाय खो केकरा कहइत हथ ?" तब साधु जी कहलन कि "तोहनी के न कहइत हे, ओकर नइहर के घोड़जई सब गाय खा गेलई हे ।" फिन साधु जी कहलन कि अपने लोग जल्दी-जल्दी खा के जाऊँ । सब साधु जल्दी-जल्दी खा के भागलन । साधु जी के सधुआइन खूब जरल-भुनल सुनौलन आउ कहलन कि एही का तो हम्मर भाई हलन । ऊ दिन खीस में सधुआइन साधु जी के झड़ुआहु दिलन ।
एगो हलन साधु जी । उनकरा बड़ी संगी-साथी आवऽ हलन । उनकर मेहररुआ बड़ी खिसिया हल । रोज-रोज साधु जी एगो-दूगो के खियावऽ हलन । सेही गुने साधु के मेहररुआ बड़ी रंज होवऽ हल । मेहररुआ बड़ी बदमास हल । एक दिन साधु के हिआँ सोरह गो साधु आ गेलन । साधु जी ऊ सब सधुअन के खिलावे ला उपाय रचलन आउ कहलन कि तोर सब भाई आयल हथुन । जल्दी से खाय ला बनावऽ । तब सधुआइन तुरते खाय ला बनौलन आउ अपन भाई जान के सब के नस्ता करौलन । फिन सधुआइन खाना बनौलन - सोरहो प्रकार के तरकारी आउ बासमती के भात आउ रहर के दाल । सधुआइन साधु से कहलन कि कोई भाई अभी भेंट करे न आयल से एकाध गो के भेंट करे ला भेज दऽ । साधु जी कहलन कि एती घड़ी रात में भाई से भेंट करे लगवऽ तो गाँव के लोग कहतथुन कि ई रात में के तो काहे ला रोइत हे । से सधुआइन कहलन कि अन्हारहीं भेंट करब ।
अब साधु लोग के बीज्जे कराके खिआवल जाइत हल तब सधुआइन दुआरी से मुँह निकाल के देखलन तो सोरह गो जटाओला साधु खा रहल हे । जटा देख के सधुआइन के लहर तरवा से कपार पर चढ़ गेल । ऊ खूब गारी बके लगलन - "चाहे खाय खो चाह गाय खो ।" तब सधुअन कहलन कि "गाय खो केकरा कहइत हथ ?" तब साधु जी कहलन कि "तोहनी के न कहइत हे, ओकर नइहर के घोड़जई सब गाय खा गेलई हे ।" फिन साधु जी कहलन कि अपने लोग जल्दी-जल्दी खा के जाऊँ । सब साधु जल्दी-जल्दी खा के भागलन । साधु जी के सधुआइन खूब जरल-भुनल सुनौलन आउ कहलन कि एही का तो हम्मर भाई हलन । ऊ दिन खीस में सधुआइन साधु जी के झड़ुआहु दिलन ।
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