[ कहताहर - बिगन यादव, मो॰-पो॰ - बेलागंज, जिला - गया ]
कोई गाँव में एगो राजा हल । ओकरा एक्के गो बेटा हल । राजकुमार के सादी कर के राजा मर गेलन । माय-बाप के मरे पर राजकुमार आउ रानी राज करे लगलन । राजकुमार एगो कुम्हइन से परेम करऽ हल । ई से ओकरा रोज रात के आवे में कुबेर हो जा हल । रानी केतनो बोले-भूके बाकि उनकर आदत नऽ छूटल । संजोग से एक दिन कुम्हरा राजा के अपन घरहीं पर पकड़ लेलक आउ ठउरे जान मार देलक । तऽ ओकरा भारी डर हो गेल । ऊ लास पचावे ला एगो कोयरी के खेत में ले गेल आउ लाठी के सहारे ओकरा खड़ा कर देलक । दू-चार गो भंटा तोड़ के ओकर फाँड़ा में रख देलक आउ दू-चार गो ओहिजा गिरा भी देलक । कोयरिया ओती घड़ी खेत में सूतल हल । उठल तऽ देखलक कि आज चोर पकड़ा गेल । ऊ लाठी उठवलक आउ सहेट के एक पटकन कनपट्टी में जमौलक । ऊ गिर गेल । कोयरिया भिरू जाके देखलक तो राजा साहेब ! अब ओकर हवासे गुम ! छटपटाइत घरे गेल आउ मेहररुआ से सब हाल कहलक । ऊ कहलकई कि एतने में घबड़ा गेलऽ । कहइत हिवऽ से करऽ । राजा के महल में जाके ओकरे दूरा पर से ओकरे बोली में रानी के पुकारऽ आउ ऊ जे कहतवऽ से आन के कर दीहँऽ । कोयरी ओही घड़ी उहाँ गेल आउ रानी के बोलवलक । रानी भीतरहीं से कहलन कि "ढँकनी भर पानी में डूब के नऽ मर जा ? आज नऽ खुलतवऽ केंवाड़ी !" बस, कोयरिया तुरत कुम्हार ही से ढँकनी लवलक आउ ओकरा में पानी भर देलक । राजा के लास के महल के दूरा पर लान के ढँकनी में नाक डूबा के पेटकुनिये पार देलक आउ जाके अप्पन खेत में सूत गेल । बिहान भेल तो महल खुलल आउ रनियाँ के रजवा पर नजर पड़ल तो जार-बेजार रोवे लगल -"रजवा हो रजवा, जे कहली से कर देलऽ हो रजवा !"
कोई गाँव में एगो राजा हल । ओकरा एक्के गो बेटा हल । राजकुमार के सादी कर के राजा मर गेलन । माय-बाप के मरे पर राजकुमार आउ रानी राज करे लगलन । राजकुमार एगो कुम्हइन से परेम करऽ हल । ई से ओकरा रोज रात के आवे में कुबेर हो जा हल । रानी केतनो बोले-भूके बाकि उनकर आदत नऽ छूटल । संजोग से एक दिन कुम्हरा राजा के अपन घरहीं पर पकड़ लेलक आउ ठउरे जान मार देलक । तऽ ओकरा भारी डर हो गेल । ऊ लास पचावे ला एगो कोयरी के खेत में ले गेल आउ लाठी के सहारे ओकरा खड़ा कर देलक । दू-चार गो भंटा तोड़ के ओकर फाँड़ा में रख देलक आउ दू-चार गो ओहिजा गिरा भी देलक । कोयरिया ओती घड़ी खेत में सूतल हल । उठल तऽ देखलक कि आज चोर पकड़ा गेल । ऊ लाठी उठवलक आउ सहेट के एक पटकन कनपट्टी में जमौलक । ऊ गिर गेल । कोयरिया भिरू जाके देखलक तो राजा साहेब ! अब ओकर हवासे गुम ! छटपटाइत घरे गेल आउ मेहररुआ से सब हाल कहलक । ऊ कहलकई कि एतने में घबड़ा गेलऽ । कहइत हिवऽ से करऽ । राजा के महल में जाके ओकरे दूरा पर से ओकरे बोली में रानी के पुकारऽ आउ ऊ जे कहतवऽ से आन के कर दीहँऽ । कोयरी ओही घड़ी उहाँ गेल आउ रानी के बोलवलक । रानी भीतरहीं से कहलन कि "ढँकनी भर पानी में डूब के नऽ मर जा ? आज नऽ खुलतवऽ केंवाड़ी !" बस, कोयरिया तुरत कुम्हार ही से ढँकनी लवलक आउ ओकरा में पानी भर देलक । राजा के लास के महल के दूरा पर लान के ढँकनी में नाक डूबा के पेटकुनिये पार देलक आउ जाके अप्पन खेत में सूत गेल । बिहान भेल तो महल खुलल आउ रनियाँ के रजवा पर नजर पड़ल तो जार-बेजार रोवे लगल -"रजवा हो रजवा, जे कहली से कर देलऽ हो रजवा !"
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