[ कहताहर - गंगजली, ग्राम - बेलखरा, जिला - जहानाबाद ]
एगो बाबा जी पहले-पहल रोसगदी करावे ससुरारी गेलन । अपन रोसगद्दी (अउरत के) करा के चललन तो राह में एगो नदी मिलल । नदी में पानी कम हल । कहार लोग पार हो गेलन आउ बाबा जी अपन मेहरारू के साथ खा-पी के पार होय लगलन । अपने में कहलन कि हमनी दूगो तो ही, नदी पार हो जाईं । जब नदी पार होवे लगलन तो कपड़ा ऊपर उठा लेलन । उहईं पर एगो सिआर हल जे पड़िआइन के देखइत हल । पड़िआइन के दहिना जाँघ में सिआर तिलवा देखलक आउ ऊ भी नदी के पार हो गेल । बाबा जी से कहलक कि ई हम्मर मेहरारू हे । बाबा जी कहलन कि नऽ, ई हम्मर हे । दूनो लड़इत-लड़इत पंच के पास फैसला ला गेलन । पंच सब एक जगह मिल के बाबा जी से पूछलन कि अप्पन अउरत के कुछ चिन्हा बतावऽ । बाबा जी कहलन कि "हम बताईं, अभी पहिल ही तो रोसगद्दी करौले जाइत ही !" पंच फिन सिअरवा से पूछलन कि "तोर मेहरारू के का खास चिन्हा हउ ?" ऊ कहलक कि हमर मेहरारू के दहिना जाँघ में तिलवा हे । सिआर के बात सुन के पंच लोग चिन्हा देखे ला एगो दाई के बोलौलन । दाई जाके एकान्त में पड़िआइन के दहिना जाँघ देखलक आउ उहाँ तिलवा होवे के बारे में ठीक बतौलक । पंच लोग फैसला सुनौलन कि ठीके ई मेहरारू सियरवे के हे । बाद में तीनों के पंचलोग तीन कोठरी में बंद कर देलन तब तीनों रोवे लगलन । रोआई सुन के पंच लोग बाबा जी से पूछलन कि तू काहे ला रोइत हऽ ? ऊ कहलन कि हम रोइत ही हम्मर मेहरारू सिआर के मिल गेल । पंच जवाब पड़िआइन से रोवे के कारण पूछलन तो जब देलन कि हम्मर पुरुष बाबा जी हलन से सिआर मिलला । फिन सिआर से रोवे के कारण पूछलन आउ कहलन कि तू काहे ला रोइत हे ? तोरा तो मेहरारू मिलिए गेलो । बाबा जी मेहरारू ला रोइत हथ, पड़िआइन पुरुष ला रोइत हथ । सिअरवा कहलक कि हम तोहनी के इंसाफ ला रोइत ही कि सिआर के मेहरारू कहीं अदमी हो हे ?
एगो बाबा जी पहले-पहल रोसगदी करावे ससुरारी गेलन । अपन रोसगद्दी (अउरत के) करा के चललन तो राह में एगो नदी मिलल । नदी में पानी कम हल । कहार लोग पार हो गेलन आउ बाबा जी अपन मेहरारू के साथ खा-पी के पार होय लगलन । अपने में कहलन कि हमनी दूगो तो ही, नदी पार हो जाईं । जब नदी पार होवे लगलन तो कपड़ा ऊपर उठा लेलन । उहईं पर एगो सिआर हल जे पड़िआइन के देखइत हल । पड़िआइन के दहिना जाँघ में सिआर तिलवा देखलक आउ ऊ भी नदी के पार हो गेल । बाबा जी से कहलक कि ई हम्मर मेहरारू हे । बाबा जी कहलन कि नऽ, ई हम्मर हे । दूनो लड़इत-लड़इत पंच के पास फैसला ला गेलन । पंच सब एक जगह मिल के बाबा जी से पूछलन कि अप्पन अउरत के कुछ चिन्हा बतावऽ । बाबा जी कहलन कि "हम बताईं, अभी पहिल ही तो रोसगद्दी करौले जाइत ही !" पंच फिन सिअरवा से पूछलन कि "तोर मेहरारू के का खास चिन्हा हउ ?" ऊ कहलक कि हमर मेहरारू के दहिना जाँघ में तिलवा हे । सिआर के बात सुन के पंच लोग चिन्हा देखे ला एगो दाई के बोलौलन । दाई जाके एकान्त में पड़िआइन के दहिना जाँघ देखलक आउ उहाँ तिलवा होवे के बारे में ठीक बतौलक । पंच लोग फैसला सुनौलन कि ठीके ई मेहरारू सियरवे के हे । बाद में तीनों के पंचलोग तीन कोठरी में बंद कर देलन तब तीनों रोवे लगलन । रोआई सुन के पंच लोग बाबा जी से पूछलन कि तू काहे ला रोइत हऽ ? ऊ कहलन कि हम रोइत ही हम्मर मेहरारू सिआर के मिल गेल । पंच जवाब पड़िआइन से रोवे के कारण पूछलन तो जब देलन कि हम्मर पुरुष बाबा जी हलन से सिआर मिलला । फिन सिआर से रोवे के कारण पूछलन आउ कहलन कि तू काहे ला रोइत हे ? तोरा तो मेहरारू मिलिए गेलो । बाबा जी मेहरारू ला रोइत हथ, पड़िआइन पुरुष ला रोइत हथ । सिअरवा कहलक कि हम तोहनी के इंसाफ ला रोइत ही कि सिआर के मेहरारू कहीं अदमी हो हे ?
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