Saturday, March 8, 2008

4.32 काको बहिन

[ कहताहर - रमुनी देवी, मो॰-पो॰ - कचनामा, जिला - जहानाबाद]

एगो गाँव में चार भाई रहऽ हलन । उनकर एगो काको बहिन हल जे हरमेसे ससुरार रह़ऽ हलन । एक रोज काको अपने नइहर आवइत हलन । भइवन बघारे में देखलन बाकि चीन्हलन नऽ । गाँव के लइकन देखलन तो उनकर घरे आन के कहलन कि ककोइया बहिनी आवइत हथुन । तब उनकर भउजाई एक सूप खँखरी पसार देलन । जब काको दुहारी पर पहुँचलन तो भउजाई बोललन -
सुखूँ-सुखूँ खखरी । ननद अइहें भुखरी ।।
न सुखिहें खखरी । ननद जइहें भुखरी ।।

एतना सुनके काको सोचलन कि पहिलहीं तो भउजाई अइसे बोलइत हे तब घरे कउची जाईं ? तुरते दूरे पर से ऊ लौट गेलन आउ नगरी में आन के खेसारी के साग खयलन । उनका भाई देखलन बाकि न चीन्हलन तो काको बहिनी बोललन -
बाप-भाई हीं अयली । साग खोंट खयली ।।

ए धरती माता, तू खूब फाट के उपजिहँऽ तब फिर फिर हम अप्पन नइहर आयम । एकरा सुने पर भइवन के दया आ गेल आउ पूछलन कि तोर घर कहाँ हउ मइयाँ ? तब ऊ बोलल कि हम तोहनी के बहिनी न हिअउ ? तब भइवन चीन्हलन आउ घरे चले कहलन तो काको बहिनी कहलन कि "अजवने नऽ भउजाई खखरी देखा के हाथ चमका-चमका के कहलथुन हे -
सुखूँ-सुखूँ खखरी । ननद अइहें भुखरी ।।
न सुखिहें खखरी । ननद जइहें भुखरी ।।

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