[ कहताहर - प्रसाद साव, मो॰ - चिलोरी, भाया मलाठी, जिला - गया]
एगो ब्राह्मन हलन । ऊ ठाकुर के सेवा करऽ हलन । ठाकुर जी के सेवा करे में ऊ कभी-कभी भूखे भी मरे लगऽ हलन काहे से कि उनका एगो भइँस भी हले । बाबा जी भइँसिया के देखे ला एगो भूइयाँ रखलन । एक दिन एकादसी आयल तो कहलन कि "ए रे, आज एकारसी हउ । खाय के न हउ !" से ऊ दिन भूइयाँ कइसहूँ भूखे रह गेल । जब दोसर महीना में फिनो एकादसी आयल तो भूइयाँ खिसिया गेल आउ कहलक कि एकारसी रहो इया दोआरसी, हमरा चाउर दे दऽ । हम बनायम-खायम । बाबा जी ओकरा चाउर दे देलन । भूइयाँ चाउर आउ भइँस ले के जंगल में चरावे ले गेल । बाबा जी ओकरा एगो घंटी दे देलन आउ कहलन कि खाय जयतो तो घंटी बजा दिहें ।
एगो ब्राह्मन हलन । ऊ ठाकुर के सेवा करऽ हलन । ठाकुर जी के सेवा करे में ऊ कभी-कभी भूखे भी मरे लगऽ हलन काहे से कि उनका एगो भइँस भी हले । बाबा जी भइँसिया के देखे ला एगो भूइयाँ रखलन । एक दिन एकादसी आयल तो कहलन कि "ए रे, आज एकारसी हउ । खाय के न हउ !" से ऊ दिन भूइयाँ कइसहूँ भूखे रह गेल । जब दोसर महीना में फिनो एकादसी आयल तो भूइयाँ खिसिया गेल आउ कहलक कि एकारसी रहो इया दोआरसी, हमरा चाउर दे दऽ । हम बनायम-खायम । बाबा जी ओकरा चाउर दे देलन । भूइयाँ चाउर आउ भइँस ले के जंगल में चरावे ले गेल । बाबा जी ओकरा एगो घंटी दे देलन आउ कहलन कि खाय जयतो तो घंटी बजा दिहें ।
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