Monday, March 24, 2008

7.03 बुरबक लइका

[ कहताहर - रामप्यारे सिंह, मो॰-पो॰ - तरार, जिला - गया]

एगो अहीर के एगो लइका हल । ओकरा कोई बात हाली समझ में नऽ आवऽ हल । एक दिन ऊ अप्पन माय से पूछलक कि हम्मर बिआह होयल हे कि न ? मइया कहकई कि "तोर सादी पेटे में हो गेलवऽ हल ।" बेटा ससुरार जाय ला तइयार हो गेल । मइया कहकई कि जो, तऽ रास्ता पूछलक । ऊ बतौलकई कि "नाक के सीध में चल जइहँऽ तो ससुरारे पहुँच जयबऽ ।" बेचारा चलइत-चलइत जब कुछ दूर चल गेल तो सामने ही एगो ताड़ के पेड़ मिलल । नाक के सामने पेड़ पड़ल तो ओकरा पर ऊ चढ़ गेल आउ उतरे लगल तो ओकर गोड़ छूट गेल । हाथ से चूम्ह के खउका धयले रहल । ऊ रास्ता से बरात से लौटल एगो हाथी आ रहल हल । ओकरा पर नचनियाँ बजनियाँ बइठल हलन । लइकवा कहलक कि "ए भाई पीलवान, जरा हथिया खड़ा कर के हमरो उतार लऽ ।" पीलवान ई सुन के अप्पन हाथी खड़ा कर देलक, आउ ओकरा पर रंडिया के खड़ा कर देलक फिर ओकर कान्हा पर अपने खड़ा हो गेल । ओकरा पर बजनियाँ हो गेल आउ ई तरह से दू चार गो जे हाथी पर हलन से खड़ा हो गेलन आउ लइकवा के टाँग धरा गेल । उतारे के उपाय होय लगल तो हाथी ओहिजा से आगे घँसक गेल । सब तार के पेड़ से लटक गेलन । लटकल देर होयल तऽ लइकवा बोलल कि अब कुछ गान-बजान होवे के चाही । उहँई सब मिल के गान-बजान सुरु कयलन । रंडिया हईसन गाना गवलक कि लइकवा खुसी में ताली बजावे लगल तो सब भदा-भदा ताड़ से गिर गेलन । नीचे रंडिया हल जेकरा से ओकरा जादे चोट लगल । समजिवा में से लइकवा के दू पइसा के तेल लावे ला कहलक । ऊ दोकान से मलिया में तेल लावे गेल । छोट मलिया के वजह से ऊ भर गेल तो मँगनी माँगलक । दोकनदरवा कहलक कि मँगनी का में दिअऊ ? तो लइकवा मलियवा उलट के कहलक कि ई पटी दे दऽ । ऊ लइकवा उलटी मलिया लेके ताड़ भीरु पहुँचल तो हुआँ पूछल गेल कि दू पइसा के एतने तेल हउ ? लइकवा मलियवा उलट के देखा देलक कि आउ ई पटी हे ।

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