Thursday, March 27, 2008

8.20 ढपोरशंख

[कहताहर - पंकजवासिनी, द्वारा सुरेन्द्र साह, पटेलनगर, पटना]

एगो बाबा जी हलन । ऊ बड़ी गोल-गोल बात बतियावऽ हल । उनकर ई खूबी हल कि ऊ कोय के भी पुछला पर इया कोय काम अढ़ैला पर खूब लम्बा-चौड़ा बात बतियावऽ हलन बाकि करऽ कुच्छो न हलन । उनकर ई आदत से भला आदमी के बड़ी परेशानी होवऽ हल ।

एक तुरी ऊ जंगल से चलल आ रहलन हल कि उनका बीच राह में पड़ल एगो शंख मिलल । ऊ शंख के उठा के ले ले अयलन । घरे आके ओकरा धो-धा के ऊ पहले ओकर पूजा कयलन फिनू ओकरा फूँकलन । ओकरा में से अवाज आयल - "सुखी रहऽ बचवा ! जे मन के चाहऽ हवऽ से माँगऽ ।"

बाबा जी के ऊ घरी बड़ी भूख लगल हल । ऊ शंख के परनाम कहलन आउर कहलन - "हमरा बड़ी भूख लगल हे । से हमरा खूब बढ़िया भोजन करावऽ ।" उनकर प्रार्थना सुन के शंख बजलक - "ल लड्डू खाऽ ! पूड़ी खाऽ ! इमरिती खाऽ ! बर्फी खाऽ ! पेड़ा खाऽ ! "बाजा ती खुस होके कहलन - "बस, बस ! पहले इतने दे दऽ ।" ऊ आस जोहइत में बइठल रहल बाकि कुच्छो न आयल । बाद में ऊ अब भी कुछ मँगलन, ऊ शंख बार-बार ओयसने देवे के खूब लम्बा-चौड़ा हाँक देत बाकि कभियो कुच्छो देवे नऽ !

बाबा जी समझ गेलन के ऊ शंख उनकरे नियन खाली हाँके ओला ढपोरशंख हे, जो बात तो खूब लुभावे ओला कहऽ हे बाकि कुच्छो करऽ न हे !

2 comments:

रेयाज़ बघाकोली said...

@ नारायण प्रसाद जी , ई जान के हमरा बड़ा मिजाज खुश होलवा की एतना अच्छा लघु कथा लिखल हे ...हमारा दिने से बहुत बहुत धन्यावाद .....

prabhat singh said...

dear narayan prasad jee

rauwa ke pranam,,

hum rauwa se badi prerit haol hi, kahe ki rauwa magahi bhasha ke jinda rakhle hii,,,