[ लोककथा-संकलक द्वारा संकलित]
एगो बाबा जी बहलन । ऊ तीन भाई हलन । तीनो महामूरुख हलन । तनिको पढ़-लिखे से मतलब न हल । बड़का भाई के सादी होयल हल । से एक दिन उनकर मेहरारू कहलन कि कहीं बाहर जा के कमा-खा गन । तब बाबाजी एगो राजाजी के पास गेलन आउ राजा जी से कहलन कि कुछ पूजा-पाठ करे के नोकरी दिहीं जे से हम्मर पेट चले । राजा कहलन कि हम्मर ठकुरवाड़ी में पूजा करीं -- दस रुपेया आउ खाना-पीना महिनवारी मिलतवऽ । बाबाजी सोचलन कि हम पढ़ल-लिखल तो ही नऽ -- पूजा-पाठ कइसे करब ? फिनो एगो उपाय सोच के जाप के रट लगावे लगलन । ऊ "जाप-जाप-जाप" के खाली रट लगावऽ हलन । तब फिनो बाबा जी के मँझिला भाई के उनकर भउजाई कहीं कमाय-खाय ला भेजलन । ऊ भी हुआँ से चल के ओही राजा के पास पहुँचलन । अप्पन उजूर सुनौलन कि हमरो कुछ खाय-पीय के नोकरी देती हल । राजा कहलन कि जा के ठकुरवाड़ी में पूजा-पाठ करऽ, उहाँ आउ ब्रह्मण पूजा-पाठ करइत हथ । दस रुपेया महीना आउ खाना-पीना मिलतवऽ । एतना सुन के ऊ भी ठकुरवाड़ी में चल गेलन आउ अप्पन भाई के पूजा करइत देखलन आउ सुनलन कि जाप-जाप करइत हथ । तो ई नेहा के "जप-जपा" के रट लगावे लगलन । ई तरी रोज अपना काम करे लगलन ।
कुछ दिन के बाद छोटका भाई के भी भउजाई भेज देलन । ऊ भी राजा के पास आन के नोकरी माँगलन । उनका भी ठकुरवाड़ी में दस रुपेया महीना आउ खाना-पीना पर नोकरी पूजा करे ला लग गेल । ई कुछ चलाँक हलन से कहलन कि हमनी तीनो भाई "जाप-जाप" , मँझिला भाई "जप-जपा" करइत हथ । देख के सोचलन कि राजा एहनी के देख लेवे तो बिना पिटाई के खैरियत न हे । मुफत में पइसा कमा रहलन हे । एहनी के जै घड़ी निबहइत हे तै घड़ी निभ जाय, एही में गनीमत हे । ई सोच के ऊ रट लगौलन कि "जै घड़ी निबहे तै घड़ी -- जै घड़ी निबहे तै घड़ी ।" ई तरह से तीनो भाई नोकरी करे लगलन आउ दस-दस रुपेया के हिसाब से तीस रुपेया महीना घरे आवे लगल । मूरुख राजा के राज में अइसने काम होवऽ हे । ओकर मूरुख से मूरुख भी ठग ले हे ।
एगो बाबा जी बहलन । ऊ तीन भाई हलन । तीनो महामूरुख हलन । तनिको पढ़-लिखे से मतलब न हल । बड़का भाई के सादी होयल हल । से एक दिन उनकर मेहरारू कहलन कि कहीं बाहर जा के कमा-खा गन । तब बाबाजी एगो राजाजी के पास गेलन आउ राजा जी से कहलन कि कुछ पूजा-पाठ करे के नोकरी दिहीं जे से हम्मर पेट चले । राजा कहलन कि हम्मर ठकुरवाड़ी में पूजा करीं -- दस रुपेया आउ खाना-पीना महिनवारी मिलतवऽ । बाबाजी सोचलन कि हम पढ़ल-लिखल तो ही नऽ -- पूजा-पाठ कइसे करब ? फिनो एगो उपाय सोच के जाप के रट लगावे लगलन । ऊ "जाप-जाप-जाप" के खाली रट लगावऽ हलन । तब फिनो बाबा जी के मँझिला भाई के उनकर भउजाई कहीं कमाय-खाय ला भेजलन । ऊ भी हुआँ से चल के ओही राजा के पास पहुँचलन । अप्पन उजूर सुनौलन कि हमरो कुछ खाय-पीय के नोकरी देती हल । राजा कहलन कि जा के ठकुरवाड़ी में पूजा-पाठ करऽ, उहाँ आउ ब्रह्मण पूजा-पाठ करइत हथ । दस रुपेया महीना आउ खाना-पीना मिलतवऽ । एतना सुन के ऊ भी ठकुरवाड़ी में चल गेलन आउ अप्पन भाई के पूजा करइत देखलन आउ सुनलन कि जाप-जाप करइत हथ । तो ई नेहा के "जप-जपा" के रट लगावे लगलन । ई तरी रोज अपना काम करे लगलन ।
कुछ दिन के बाद छोटका भाई के भी भउजाई भेज देलन । ऊ भी राजा के पास आन के नोकरी माँगलन । उनका भी ठकुरवाड़ी में दस रुपेया महीना आउ खाना-पीना पर नोकरी पूजा करे ला लग गेल । ई कुछ चलाँक हलन से कहलन कि हमनी तीनो भाई "जाप-जाप" , मँझिला भाई "जप-जपा" करइत हथ । देख के सोचलन कि राजा एहनी के देख लेवे तो बिना पिटाई के खैरियत न हे । मुफत में पइसा कमा रहलन हे । एहनी के जै घड़ी निबहइत हे तै घड़ी निभ जाय, एही में गनीमत हे । ई सोच के ऊ रट लगौलन कि "जै घड़ी निबहे तै घड़ी -- जै घड़ी निबहे तै घड़ी ।" ई तरह से तीनो भाई नोकरी करे लगलन आउ दस-दस रुपेया के हिसाब से तीस रुपेया महीना घरे आवे लगल । मूरुख राजा के राज में अइसने काम होवऽ हे । ओकर मूरुख से मूरुख भी ठग ले हे ।
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