Saturday, March 1, 2008

3.09 एगो ब्राह्मण चार गो चोर

[ कहताहर - भोला प्रसाद, चतरा, जिला - चतरा]

एगो बड़ी गरीब पंडी जी हलन । ऊ केतनो कमाय तइयो उनका पेट न भरे । जोत-जमीन हल जेकरा में पैदे न हो हले । एक दिन पड़िआइन कहलन कि कहीं जा के कथा-पुरान कहऽ तो खाय-पीये के मिल जतवऽ । ई सुन के पंडी जी पोथी-पतरा लेके घर से परदेस निकललन । जाइत-जाइत नौरंग देस पहुँचलन । ऊ गाँव के पूरब भर देवस्थान हले । उहँई बइठ के ऊ देवी भागवत कहे लगलन । चरहवन सुनलन आउ आरती में पंडी जी के चार गो पइसा पड़ गेल । दोसर दिन चरहवन गाँव में जा के हल्ला कर देलन कि एगो पंडी जी अलथिन हे से बड़ा बढऽिया कथा कहऽ हथिन । दोसर दिन से बड़ी मानी लोग कथा सुने आवे लगलन । ओही गाँव में एगो कंजूस बनिया हले । ओकरा चमड़ी जाय बाकि दमड़ी न जाय के खेयाल बराबर रहऽ हल । एक दिन ऊ बनिवाँ भोरे मैदान गेल हल तो पार्वती के महादे(व) जी से पूछइत सुनलक कि बाबा जी के केतना केतना मिलतइन । तब मंदिर में महादे जी पर्वती जी से कहलकथिन कि एक हजार अइसे आउ दू सौ आरती में । ई सब बात बनिवाँ सुनलक आउ जा के पंडी जी से पाँच सौ में ठीका करा लेलक । पंडी जी सोचलन कि पाँच सौ मिलत कि तो न मिलत, हमरा पहिलहीं मिल तो जाइत हे । कथा-पूजा होइत-होइत पूर्णाहुति के दिन आल । ऊ दिन बड़ी लोग जुटलन । बनिवाँ खूब ठाट में जाके आगहीं बइठ गेल ।
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