Sunday, March 2, 2008

3.11 राकस से बड़ा भोकस

[ कहताहर - रामप्यारे सिंह, ग्राम - बेलखरा, जिला - जहानाबाद]

एगो बाबा जी हलन । ऊ बड़ा गरीब हलन । उनकर मेहरारू कहलन कि जा कहीं दूसर जगुन कमा-खा गन । बाबा जी राह के कलेवा ला ला कुछ माँगलन तो जव के सतुआ पंडिताइन बाँध देलन । बाबा जी लेके चललन । जाइत-जाइत एगो पक्का के कुआँ मिलल, उहाँ बाबा जी नेहा के खा लेलन । खाके आगे चललन तो जाइत-जाइत बीच ढाब में साँझ हो गेल । अब रात में जाय कहाँ से ओहिजे एगो पीपर के पेड़ पर चढ़ गेलन । ऊ पिपरा पर सात गो राकस रहऽ हलन जे कनहूँ घूमे गेलन हल । ऊ सब भी साँझ खनी पहुँच गेलन । देखलन कि हम्मर घर में के तो एगो आउ आयल हे । ओकरा से रकसवन पूछलक कि तूँ कउन हे ? बाबा जी पूछलन कि तू कउन हे ? तब ओहनियों बोलल कि हमनी राकस ही । तब बाबा जी कहलन कि हम राकस के भाई भोकस ही । रकसवन पूछलक कि तोर दाँत कइसन हऊ ? रकसवन नीचे हल से बाबा जी ऊपरे से लोटा गिरा देलन आउ कहलन कि देख दाँत । लोटा गिरल से एगो राकस के मुँहे पर लगल । बाबा जी ऊपरे से डोरी भी गिरवलन आउ कहलन कि एकरे में बान्हबउ । तब रकसवन कहलन कि अपने के ही, ठीक-ठीक बताऊ, हमनी अपने के गुरु मानइत ही । तब ऊ कहलन कि अपने का चाहइत ही ? बाबा जी कहलन कि कुछो दे देऽ । रकसवन उनका एगो बैल दे देलक आउ कहलक कि एही से तूँ कमइहऽ खइहऽ ।

********* Entry Incomplete **********

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