[ कहताहर - सुरेश कुमार, ग्राम - देवरा, जिला - नवादा]
एगो हलै अंधरा औ एक ठो लँगड़ा । ऊ दुनू एक दिन सोचलकै कि हमनी बैठल की करऽ ही, से चल कमाय ला । तऽ ऊ दुनू एक ठो ढोल लैलकै औ' ओता से चललै । चलते-चलते हो गेले अन्धार । अन्हरा पूछलकै कि अरे लँगड़ा, केतना दिन हे रे ? तो लँगड़ा कहलकै कि साँझ हो गेलो । तो अन्धरा कहलकै अबकी फिर से देखीं तो, एक ठो बाघ के माँद हौ ? तो लंगड़ा कहलकै कि हाँ, एक ठो बाघ के मान्द हौ । तो ओकरा में ऊ दुनू बैठ रहलकै औ दुनू ढोल बजावे लगलै, तो बाघ सुनलकै कि अरे हमर मँदिया में ढोल बजवऽ हे तो बाघ ओता अयलै औ' ऊ दुनू से पूछलकै कि तू कौन हीं ? तो अन्धरा पूछलकै कि तूँ कौन हीं ? तो बाघ कहलकै कि हम सेर ही । तो अन्धरा कहलकै कि हम सवा सेर ही । एतना जे सुनलकै बाघ से ओहिजा से भागे लगलै । सियरा बाघ के भागते देखलकै तो ऊ ओकरा से पूछलकै कि कहाँ भागल जा हीं बाघ मामू ? तो बघवा कहलकै कि हम्मर घर में सवा सेर अयलो हे । तो सियरा कहलकै कि ऊ सवा सेर न हो । ऊ दुनू अन्धरा-लंगड़ा हो । फिनू कहलकै कि चलहीं तो देख लिअउ । बाघ कहलकै ऐसे हम नै जयबो से दुनू गोड़ बान्ह ले । गोड़ बान्ह के ऊ दुनू चललै तो अन्धरा पूछलकै लंगड़ा से कि रे लंगड़ा, बाघ की करऽ हौ ? लंगड़ा कहलकै कि बाघ अबरी सियरा के साथे आवऽ हकौ । तो अन्धरा कहलकै के आवे देहीं । जब बाघ ओता अयलै तो अन्धरा कहलकै कि सियरा के छोड़ के बाघ के पकड़ऽ । एतना जे सुनलकै से बाघ भागे लगलै । भागते-भागते सियरा मर गेलै तो बाघ ओकरा खोल के भाग गेलै ।
एगो हलै अंधरा औ एक ठो लँगड़ा । ऊ दुनू एक दिन सोचलकै कि हमनी बैठल की करऽ ही, से चल कमाय ला । तऽ ऊ दुनू एक ठो ढोल लैलकै औ' ओता से चललै । चलते-चलते हो गेले अन्धार । अन्हरा पूछलकै कि अरे लँगड़ा, केतना दिन हे रे ? तो लँगड़ा कहलकै कि साँझ हो गेलो । तो अन्धरा कहलकै अबकी फिर से देखीं तो, एक ठो बाघ के माँद हौ ? तो लंगड़ा कहलकै कि हाँ, एक ठो बाघ के मान्द हौ । तो ओकरा में ऊ दुनू बैठ रहलकै औ दुनू ढोल बजावे लगलै, तो बाघ सुनलकै कि अरे हमर मँदिया में ढोल बजवऽ हे तो बाघ ओता अयलै औ' ऊ दुनू से पूछलकै कि तू कौन हीं ? तो अन्धरा पूछलकै कि तूँ कौन हीं ? तो बाघ कहलकै कि हम सेर ही । तो अन्धरा कहलकै कि हम सवा सेर ही । एतना जे सुनलकै बाघ से ओहिजा से भागे लगलै । सियरा बाघ के भागते देखलकै तो ऊ ओकरा से पूछलकै कि कहाँ भागल जा हीं बाघ मामू ? तो बघवा कहलकै कि हम्मर घर में सवा सेर अयलो हे । तो सियरा कहलकै कि ऊ सवा सेर न हो । ऊ दुनू अन्धरा-लंगड़ा हो । फिनू कहलकै कि चलहीं तो देख लिअउ । बाघ कहलकै ऐसे हम नै जयबो से दुनू गोड़ बान्ह ले । गोड़ बान्ह के ऊ दुनू चललै तो अन्धरा पूछलकै लंगड़ा से कि रे लंगड़ा, बाघ की करऽ हौ ? लंगड़ा कहलकै कि बाघ अबरी सियरा के साथे आवऽ हकौ । तो अन्धरा कहलकै के आवे देहीं । जब बाघ ओता अयलै तो अन्धरा कहलकै कि सियरा के छोड़ के बाघ के पकड़ऽ । एतना जे सुनलकै से बाघ भागे लगलै । भागते-भागते सियरा मर गेलै तो बाघ ओकरा खोल के भाग गेलै ।
भागते-भागते ऊ बघवा एगो पहाड़ पर पहुँचलै । उहाँ सब बघवा पंचायत कत रहले हल । जाके कहलकै - भयवन, हम्मर घर में सवा सेर अयलो हे । तो बघवन कहलकै कि चलहीं तो । सबे उहाँ गेलै तो अन्धरा लंगड़ा से पूछलकै कि बघवा की करऽ हीं रे ? लंगड़ा कहलकै कि हाँ, अबरी एक सौ बाघ आ रहलौ हे । अन्धरा पूछलकै - देखी तो एक ठो ताड़ के पेड़ हौ । लंगड़ा कहलकै कि हाँ, एक ठो ताड़ के पेड़ हौ । ओकरा पर दुनू चढ़ गेलै । जब सब बाघ अयलै तो देखलकै कि ऊ दुनू नै हे । तऽ एक ठो बाघ कहलकै कि ऊ की ताड़ा पर हौ । ताड़ा पर सब बाघ चढ़े लगलै आउ ऊ दुनू के पकड़े में एक हाथ बाकी हलै तो अन्धरा कहलकै कि सब बाघ के छोड़के निचलके बाघ के पकड़ । एतना जे निचलका बाघ सुनलकै तऽ निकल के भाग गेलै । फिनो तो ऊपर से सब बाघ गिर गेलै आउ मर गेलै । तब अन्धरा-लंगड़ा उतर के ओकर मंदिया से सब सोना-चानी लेके दुनू घरे चल अयलै ।
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