Tuesday, March 4, 2008

4.04 चमार आउ धोबी के चलाँकी

[ कहताहर - देवनन्दन सिंह, मो॰ - चिलोरी, पो॰ - मखदुमपुर, जिला - गया ]

एगो बड़ी गरीब चमार हल । ऊ रोज जंगल से लकड़ी लावे आउ बेच-खोंच के कइसहूँ अप्पन काम चलावे । से एक दिन जंगल में गेल तो ओकरा एगो बाघ से भेंट हो गेलई । चमरा हल कुछ चलाँक से बघवा के देखते कहलक "पाँव लागी बाघ मामू !" बघवा सोचलक कि बड़ी दिन पर एगो मानुख भी मिलल तो मामू-भगिना के नाता जोड़ लेलक । अब तो एकरा खाय में पाप होयत । एतने में चमरा कहलक कि "ए बाघ मामू ! तूँ जंगल में रहऽ हऽ से गोड़ में तोरा काँटा-कुस गड़ऽ होतवऽ । हमरा हीं अइहँऽ से तोरा एगो जूता बना देवो ।" चमरा अप्पन घर बता देलक आउ कहलक कि हमर पिछुतिये एगो झोड़ार हवऽ । तूँ ओकरे में आन के नुकायल रहिहँऽ । ई तरह चमरा के ऊ दिन कइसहूँ जान बच गेल आउ घरे चल आयल ।


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