Tuesday, March 4, 2008

4.05 भलाई के फल

[ कहताहर - भोला महतो, मो॰ - खरौना, पो॰ - दाउदनगर, जिला - गया ]

एगो बाबा जी हलन । ऊ बड़ी गरीब हलन । एक दिन बाबा जी सबेरे मैदान गेलन । इनरा पर कुल्ली करे अयलन । इनरा में पानी भरे ला लोटा-डोरी डाललन तो लोटा उहँईं पकड़ा गेल । ऊ इनरा में पहिलहीं से एगो बाघ, एगो साँप आउ एगो सोनार गिरल हल । ओखनी कहे लगलन कि हमरा निकाल दऽ । बाबा जी सोचलन कि बघवा के निकालम तो खाइये जायत । सँपवा के निकालम तो काटिये लेत । बाकि सोनरा के निकाल देव तो पुन्न होयत काहे कि ऊ अदमी हे । बाकि सोनरा के निकाले तो कइसे ? बघवा छोड़वे न करे । पंडी जी पहिले बघवा के निकाल देलन । ओकरा बाद सँपवा के निकाललन तब फिनो सोनरा के निकाललन । बघवा बाबा जी के गोड़ पर गिर के कहलन कि अपने हमरा गुरु ही । एक दिन हमरा हीं आईं । सँपवा भी उनका गुरु मानलक आउ अपना हीं आवे ला बिनती कयलक । सोनरा भी अइसहीं कहलक । पंडी जी घरे आ गेलन ।

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