Tuesday, March 4, 2008

3.18 ओखरी तर बक चूने बाबा !

[कहताहर -- प्रो॰ श्यामनन्दन शास्त्री, सिमली शाहदरा, पटना सिटी (बिहार)]

एगो बड़ी गरी किसान हल । ओकरा एगो बेटी हल, जे ओकर सन्तान में सबसे बड़ी आउ बेहद सुन्नर हल । बाकी तीन गो लड़को हल से तीनो अभी छोट-छोट बुतरुए हलन । किसान के न तो खेद-बगाध हल आउ न रहे के बढ़िया मकाने हल । बस, एगो टूटल-फूटल घेरावाला झोपड़ा हल, जेकर छप्पर ताड़ के सुखल पतर से छावल हल । जब कभी तेज हवा बहऽ हल त छप्पर के तड़वा झनर-झनर बाजे लगऽ हल आउ ओकर उघरल बड़ेरी के बेंट हाथी के बड़का दाँत नियन हरमेसा निकलल रहऽ हल ।



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