Tuesday, March 4, 2008

4.01 कोइरी, कुम्हार आउ राजा

[ कहताहर -- परशुराम सिंह, मो० - तबकला, जिला - गया ]

कोई गाँव में एगो राजा के एके गो बेटा हल । ओकर माय-बाप ओकरा सादी करके मर गेल । राजकुमार रानी के साथ राज करे लगल । राजकुमार एगो कुम्हइन से परेम करऽ हल । ई से ओकर रोज रात में घरे लौटे में कुबेर हो जा हल । रानी केतनो बोले-भूके बाकि ओकर आदत न छूटल । संजोग से कुम्हरा एक दिन राजा के घर ही पकड़ लेलक आउ ठउरे जान मार देलक । त ओकरा भारी डर हो गेल । ऊ लास पचावे ला एगो कोइरी के खेत में ले गेल आउ लाठी के सहारे ओकरा खड़ा कर देलक । दू-चार गो भंटा तोड़ के ओकरा फाँड़ा में रख देलक आउ दू-चार गो ओहिजा गिरा भी देलक । कोइरिया ओती घड़ी खेते सूतल हल । उठल तो देखलक कि आज पकड़ा गेल । लाठी उठौलक आउ सहेट के एक पटकन कनपटी में जमौलक तऽ ऊ गिर गेल । कोरिया भिरी जाके देखलक तो राजा साहेब हलऽ । अब ओकर हवासे गुम हो गेल । ऊ छटपटाइत घरे गेल आउ मेहररुआ से ई सब हाल कहलक । ऊ कहकई कि एतने में घबड़ा गेल । हम कहइत हिवऽ से करऽ । राजा के महल के दुरा पर जा के ओकरे बोली में राजे के पुकारऽ आउ जे कहतवऽ से आन के कर दिहँऽ । कोइरी ओही घड़ी उहाँ गेल आउ रानी के बोलौलक । रानी भीतर ही से कहलन कि "ढँकनी भर पानी में डूब के न मर जा ! आज न खुलतवऽ किंबाड़ी !" बस, कोइरिया तुरत कुम्हार ही से ढँकनी लवलक आउ ओकरा में पानी भर देलक । राजा के लास के महल के दुरा पर लान के ढँकनी में नाक डुबा के पेटकुनिये पार देलक । फिनो जा के अप्पन खेत में सूत गेल । बिहान भेल तो महल खुलल आउ रनियाँ के रजवा पर नजर पड़ल तो जार-बेजार रोवे लगल - "रजवा हो रजवा ! जे कहली से कर देलऽ हो रजवा !"

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