[कहताहर -- संजू कुमारी, मो॰-पो॰ - अकलबिगहा, जिला - गया]
एगो राजा हलन बाकि उनका में राजा के कोई लूर-गुन न हले । ऊ दिन-रात हाय धन के फेरा में पड़ल रहऽ हलन । परजा से मालगुजारी असूल करके खजाना भरले हलन । कभी-कभी दोसरे कमजोर राजा पर चढ़ाई करके अन्न-धन-सोना लूट ले हलन । उनकर खजाना चाँदी-सोना से भर गेल तइयो उनका सनतोख न भेल ।
उनके राज में एगो चमार रहऽ हल । ऊ रोज दू जोड़ा जूता बनावऽ हले । एक जोड़ा बेच के ओकरा जे कुछ मिले ओकरे से अपने आउ परिवार के खरचा चलावऽ हले । ओकर जूता बड़ी बढ़ियाँ रहऽ हले । गरीब-गुरबा आउ साधू-महात्मा के जूता न रहे तो ऊ चमरा भिर चल जाय आउ कभी-कभी ओकरा दूनो जूता दान में देवे परे । से ऊ अप्पन परिवार साथे भुखले रह जा हल ।
संयोग से बूढ़ा हो गेला पर चमार आउ राजा एके तुरी मर गेलन । राजा के लेवे ला जमदूत आयल आउ उनका काँटे-कुसे घसीट के ले जाय लगल आउ चमरा ला जमराज सिंहासन लेके अयलन आउ कहलन कि तूँ एकरा पर बइठ के बैकुण्ठ में चलऽ । चमार कहलक कि हम्मर राजा के भी हमरा साथे सिंहासन पर ले चलऽ । तब जमराज कहलन कि इहाँ राजा-परजा, नीच-ऊँच आउ जात-पात के कोई भेद न देखल जा हे । जे जइसन करऽ हे ओकरा ओइसने फल मिलऽ हे । राजा के खजाना सोना से भरल हे तो ऊ सोना के सिंहासन पर न जयतन । एने राजा के घसटाइत आउ चिल्लाइत देख के चमरा के बड़ा मोह लगे । से ऊ जमराज से कहलक कि जब तक राजा सिंहासन पर हमरे साथे बैकुण्ठ न जयतन तब तक हमहुँ न जायब । तब जमराज कहलन कि इहाँ अदमी धन से बैकुण्ठ न जा हे । तोरा राजा के अपना साथ ले हीं चले ला हवऽ तब अप्पन कमाई के पुण्य-फल आधा उनका दे दऽ । चमरा कहलक कि हम्मर तो ई कामे हे । तुरत चित्रगुप्त बोलावल गेलन आउ चमरा के आधा कमाई राजा के खाता में लिख देवल गेल । फिन राजा आउ चमार दूनो एके सिंहासन पर चढ़के वैकुण्ठ चल गेलन । ठीके न कहल गेल हे कि करनी भल न होवे त सोना सब माटी हे ।
उनके राज में एगो चमार रहऽ हल । ऊ रोज दू जोड़ा जूता बनावऽ हले । एक जोड़ा बेच के ओकरा जे कुछ मिले ओकरे से अपने आउ परिवार के खरचा चलावऽ हले । ओकर जूता बड़ी बढ़ियाँ रहऽ हले । गरीब-गुरबा आउ साधू-महात्मा के जूता न रहे तो ऊ चमरा भिर चल जाय आउ कभी-कभी ओकरा दूनो जूता दान में देवे परे । से ऊ अप्पन परिवार साथे भुखले रह जा हल ।
संयोग से बूढ़ा हो गेला पर चमार आउ राजा एके तुरी मर गेलन । राजा के लेवे ला जमदूत आयल आउ उनका काँटे-कुसे घसीट के ले जाय लगल आउ चमरा ला जमराज सिंहासन लेके अयलन आउ कहलन कि तूँ एकरा पर बइठ के बैकुण्ठ में चलऽ । चमार कहलक कि हम्मर राजा के भी हमरा साथे सिंहासन पर ले चलऽ । तब जमराज कहलन कि इहाँ राजा-परजा, नीच-ऊँच आउ जात-पात के कोई भेद न देखल जा हे । जे जइसन करऽ हे ओकरा ओइसने फल मिलऽ हे । राजा के खजाना सोना से भरल हे तो ऊ सोना के सिंहासन पर न जयतन । एने राजा के घसटाइत आउ चिल्लाइत देख के चमरा के बड़ा मोह लगे । से ऊ जमराज से कहलक कि जब तक राजा सिंहासन पर हमरे साथे बैकुण्ठ न जयतन तब तक हमहुँ न जायब । तब जमराज कहलन कि इहाँ अदमी धन से बैकुण्ठ न जा हे । तोरा राजा के अपना साथ ले हीं चले ला हवऽ तब अप्पन कमाई के पुण्य-फल आधा उनका दे दऽ । चमरा कहलक कि हम्मर तो ई कामे हे । तुरत चित्रगुप्त बोलावल गेलन आउ चमरा के आधा कमाई राजा के खाता में लिख देवल गेल । फिन राजा आउ चमार दूनो एके सिंहासन पर चढ़के वैकुण्ठ चल गेलन । ठीके न कहल गेल हे कि करनी भल न होवे त सोना सब माटी हे ।
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