Tuesday, March 4, 2008

4.02 अहीर के बेटा

[ कहताहर -- झपसी महतो, ग्राम - खुटहन, जिला - गया ]

बहुत पहिले एगो अहीर माय-बेटा हलक । बेटवा एक दिन मइया से पूछलक कि हम्मर सादी होयल हे कि नऽ ? मइया कहकई कि तोर सादी तो बाबू तबे गेलवऽ हे जब तूँ पेटे में हलऽ । तब बेटवा कहलक कि हम ससुरारी जायम । मइया कहकई कि तऽ जा नऽ बाबू । रोसगदियो कयले अइहँऽ । अहिरा ससुरारी चलल । जाइत-जाइत रात में ससुरारी पहुँचल । उहाँ जब सरहजिया खिलावे लगल तो एगो ढिबरी बरइत देख के पूछलक कि ई कउची हवऽ ? सरहजिया मजाक करकई कि ई 'भगजोगनी' के बड़का गो बच्चा हे । खा-पी के जब सब सूत गेलन तो ढिबरिया के बरइत देख के ऊ सोचलक कि एकरा लुका देई । चलइत खानी घरे ले ले चलव । ई सोंच के ऊ फूस के घर के ओरी में ओकरा खोंस देलक । ढिबरी खोंसते लगल आग । गाँव के सब लोग बुतावे दौड़लन । पानी-ऊनी छिंटाए लगल तो अहिरा ओरिया निहुर के एन्ने-ओन्ने दउड़े । ई देख के सब पूछलन कि ई का करइत हऽ बाबू ? ऊ कहलक कि "ओरी तर 'भगजोगनी के बच्चा' रखली हे । ओकरे खोजइत ही । कहीं ओहू न जर जाय ।" तब सब कहलन कि बुझा [हे कि] एही सार अगिया लगा देलक हे । आग बुतल, एक-दू दिन ऊ ससुरारी में ठहरल फिन अप्पन अउरतिया के रोसगद्दी करा के घरे चलल ।


************* Entry Incomplete ************

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